Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 351
________________ ३. ४. ३२१ संदर्भ पंन्यास मुक्तिविमलगणि, संग्राहक - संशोधक, प्राचीनस्तवनरत्नसंग्रह, भाग १. श्रीदयाविमल जैनग्रन्थमाला, अंक ५, प्रकाशक - श्रीश्रेष्ठी जमनाभाई भृगुभाई, मनसुखभाई की पोल, अहमदाबाद १९१७ ई०स०. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ४, द्वितीय संशोधित संस्करण पृष्ठ ३८२-४१८. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३०९-१०. पंन्यास मुक्तिविमलगणि, पूर्वोक्त, भाग १, प्रस्तावना, पृष्ठ १७ - २१. मुनि जिनविजय, संपा० - जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, प्रवर्तक श्री कांतिविजयजी जैन ऐतिहासिक ग्रन्थमाला, पुष्प ६, भावनगर १९२६ ई०स०, पृष्ठ २२-३६, राससार, पृष्ठ १०-१४. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ ३८३-८५, भाग ९, पृष्ठ ८३-८४. पंन्यास मुक्तिविमलगणि, पूर्वोक्त, भाग १, प्रस्तावना, पृष्ठ ११-१२. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ ३८३-८५. ५-६. ७. ८. ९. वही, पृष्ठ ३९७-९८. १०. पंन्यास मुक्तिविमलगणि, पूर्वोक्त, भाग १, प्रस्तावना, पृष्ठ ११-१२. ११-१२ . वही, प्रस्तावना, पृष्ठ ५-६. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ९, पृष्ठ ९७. १३. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३०९-१०. वही, भाग ९, पृष्ठ ९७. १४. १५-१६. मुनि जिनविजय, संपा०- जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ २२-२६. १७- १८. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३०९-१०. १९. २०. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ २२-२६, राससार, पृष्ठ १०-१४. बुद्धिसागर, संपा० - जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ९१२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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