________________
३०५
वि०सं० १६३६ में रची गयी आठकर्मनोरास की एक प्रतिलिपि, जिसमें प्रतिलेखनकाल नहीं दिया गया है, की प्रशस्ति में कहा गया है कि उक्त रचना हीररत्नसूरि के शिष्य विनयरत्न के भ्राता विवेकरत्न के पठनार्थ लिखी गयी थी। चूंकि हीररत्नसूरि का समय (वि०सं० १६७५-१७१४) सुनिश्चित है, अत: उक्त प्रतिलिपि का भी यही समय माना जा सकता है।
हीररत्नसूरि
विनयरत्न
विवेकरत्न (इनके पठनार्थ आठकर्मनो
रास की प्रतिलिपि की गयी) १८वीं शताब्दी के प्रसिद्ध रचनाकार उदयरत्न भी हीररत्नसूरि की परम्परा के थे। वि०सं० १७४६/ई०स० १६९० में इनके द्वारा लिखी गयी दानदीपिका की एक प्रति प्राप्त हुई है। इसकी प्रशस्ति में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है :
हीररत्नसूरि
लब्धिरत्न
महोपाध्याय सिद्धिरत्न
पं० मेघरत्न
अमररत्न
उदयरत्न (वि०सं० १७४६/ई०स० १६९० में दानदीपिका
के प्रतिलिपिकार) वि०सं० १७४३/ई०स० १६८७ में लिखी गयी शुकराजरास की प्रति की प्रशस्ति में भी उदयरत्न का प्रतिलिपिकार के रूप में नाम मिलता है।
उदयरत्न द्वारा वि०सं० १७४९ से १७९९ के मध्य रचित विभिन्न रचनायें प्राप्त हुई हैं। इनका विवरण इस प्रकार है : जम्बूस्वामीरास
वि०सं०१७४९/ई०स० १६८३ अष्टप्रकारीपूजारास .
वि०सं०१७५५/ई०स० १६९९ स्थूलिभद्ररास
वि०सं० १७५९/ई०स० १७०३ शंखेश्वरपार्श्वनाथनो छंद
वि०सं०१७५९/ई०स० १७०३ राजसिंहरास अपरनाम नवकाररास वि०सं०१७६२/ई०स० १७०६ ब्रह्मचर्यनी नववाडसज्झाय
वि०सं०१७६३/ई०स० १७०७ वि०सं० १७६५/ई०स० १७०९
बारव्रतरास
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org