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नायकत्त्व को विजयसौभाग्यसूरि के आज्ञानुवर्ती मुनिजनों ने भी स्वीकार किया होगा और जब वि०सं० १८३७ में विजयउदयसूरि का निधन हो गया तब उस समय तक विजयलक्ष्मीसूरि भी काफी वयस्क हो चुके रहे थे और उन्होंने ही अपने गुरु विजयसौभाग्यसूरि और उनके गुरुभ्राता विजयप्रतापसूरि के अनुयायी मुनिजनों का नेतृत्त्व संभाला होगा। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि विजयऋद्धिसूरि के पश्चात् इस शाखा में जो भेद पड़ चुका था, वह विजयलक्ष्मीसूरि के समय में समाप्त हो गया।
विजयलक्ष्मीसूरि द्वारा संस्कृत और गुजराती भाषा में रचित विभिन्न कृतियां मिलती हैं।" १. ज्ञानदर्शनचारित्र संवादरूपवीरस्तव (रचनाकाल वि०सं० १८२७) २. षट्अष्टह्निकस्तवन (वि० सं० १८३४)
उपदेशप्रासाद-वृत्तिसहित (वि०सं० १८४३) वीसस्थानकपूजास्तवन (वि० सं० १८४५) चौबीसी ज्ञानपंचमी (अथवा सौभाग्यपंचमी) देववंदन रोहिणीसज्झाय
भगवतीसज्झाय ९. मृगापुत्रसज्झाय १०. ज्ञानपंचमीसज्झाय
वि०सं० १८४४ वैशाख सुदि १० के एक प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में विजयलक्ष्मीसूरि का नाम मिलता है। मुनि जिनविजय जी ने इस लेख की वाचना दी है५१, जो इस प्रकार है।
श्री पार्श्वनाथ भी डभंजन जी संवत् १८४४ वैशाख सु० १० गुरौ श्रीवारेजावास्तव्यसमस्तसंघेन कारिता श्री विजयलक्ष्मीसूरिभिः प्र०॥
वि० सं० १८५८ या १८५९ में इनकी मृत्यु हुई। सीनोर ग्राम में इनकी चरणपादुका स्थापित है जिसपर वि० सं० १८६८ का एक लेख उत्कीर्ण है।" लेख का मूलपाठ इस प्रकार है :
सं० १८६८ श्रावण व० १२ बुध श्रीसीनोरग्रामे समस्तसंघेन का० श्रीविजयलक्ष्मीसूरिपादुकेभ्यो नमः॥
विजयलक्ष्मीसरि के पश्चात् विजयदेवेन्द्रसरि, विजयमहेन्द्रसूरि और विजयसमुद्रसूरि ने क्रमश: इस शाखा का नेतृत्त्व किया। सोहमकुलपट्टावलीरास में इनका विवरण मिलता है। विजयसमुद्रसूरि के समय में ही कविराज दीपविजय ने उक्त रास की वि०सं० १८७७ में रचना की-३ थी। दीपविजय द्वारा रचित विभिन्न कृतियाँ प्राप्त होती हैं।५४ ।।
विजयसमुद्रसूरि के पट्टधर विजयधनेश्वरसूरि हुए। श्रीमोहनलाल दलीचंद देसाई ने वि०सं० १८९३ के एक प्रतिमालेख में इनका नाम मिलने का उल्लेख किया है।५५ परन्तु वह प्रतिमालेख कहां से प्राप्त हुआ है, उक्त लेख कहां प्रकाशित है, इन बातों की उन्होंने कोई स्पष्ट रूपसे जानकारी नहीं दी है।
बावन जिनालय, पेथापुर में अजितनाथ की धातु की एक प्रतिमा संरक्षित है जिसपर वि०सं० १८९३ माघ सुदि १० बुधवार का लेख उत्कीर्ण है। यह सम्भवत: वही प्रतिमा हो
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