Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 311
________________ संदर्भ ९. मोहनलाल दलीचद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ ८४-८५. यहाँ पट्टावली का प्रारम्भ विजयसेनसूरि से दिया गया है। मुनि कल्याणविजयगणि, संपा०- पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ २१२-१४. संपा० - प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ५३८. त्रिपुटीमहाराज, जैनपरम्परानो इतिहास, भाग ४, श्री चारित्रस्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ६०, भावनगर १९८३ई०, पृष्ठ १३२-३३. "राजसागरसूरिनिर्वाणरास' रचनाकार तिलकसागर मुनि जिनविजय, संपा० - जैनऐतिहासिकगुर्जरकाव्यसंचय, प्रवर्तक श्रीकांति विजय जैन इतिहास माला, पुष्प ७, श्रीआत्मानन्दसभा, भावनगर १९२६ई०, पृष्ठ ४५-६७; राससार, वही, पृष्ठ २१-२७. वही, पृष्ठ ५२-५३. ८. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा०- जयन्तकोठारी, पृष्ठ २७४-७५. वही, पृष्ठ ३०५-३०६. द्रष्टव्य - संदर्भ क्रमांक ५. १०.अ. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ ३०७. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ५, पृष्ठ ३५-३६. विजयधर्मसूरि, संपा०- ऐतिहासिकराससंग्रह,भाग ३, यशोविजयजैनग्रन्थमाला, भावनगर सं० १९७८, पृष्ठ ४८-५९ तथा मूलरास, पृष्ठ ४९-५६. देसाई, पूर्वोक्त, भाग ४, पृष्ठ ३३-३५. विजयधर्मसूरि, पूर्वोक्त, भाग ३, पृष्ठ ५६. वही, पृष्ठ ५२-५३. वही, पृष्ठ ५६, पादटिप्पणी, मुनि जिनविजय, जैनऐतिहासिक........, पृष्ठ २५४-२६४; राससार, पृष्ठ १७०-७३. १७. वही, राससार, पृष्ठ १७३. १८-१९. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ५, नवीन संशोधित संस्करण, पृष्ठ ३३७-३८. १९अ. बुद्धिसागर, संपा०- जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ३५. २०. जिनविजय, संपा०- प्राचीनजैनलेखसंग्रह, भाग २, लेखांक ४६०, राधनपुर प्रशस्ति, पृष्ठ ३००-३०५. २१.. पुण्यसागरसूरीणां शिष्यैरमृतसागरैः। ११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362