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हेमसुन्दर उदयवल्लभसूरि
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ज्ञानसागरसूरि
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उदयसागरसूरि
धनरत्नसूर
२२१
उदयधर्मगणि
लब्धिसागरसूरि शीलसागरसूरि चारित्रसागरसूरि धनसागरसूरि धनरत्नसूरि
(पट्टधर) (शिष्य)
(शिष्य)
(शिष्य
(शिष्य) (लब्धिसागरसूरि के पट्टधर)
अमररत्नसूरि तेजरत्नसृरि देवरत्नसृरि कल्याणरत्न सौभाग्यरत्न भानुमेरुगणि
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जयरत्न
नयसुन्दर
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शिवसुन्दरगणि
सौभाग्यसागर
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उदयसौभाग्य (हैमप्राकृत
क्षेमकीर्ति के एक शिष्य हेमकलशसूरि हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती। आचार्य देवेन्द्रसूरि द्वारा रचित धर्मरत्नप्रकरणटीका (रचनाकार वि०सं० १३०४(२३) के संशोधक के रूप में धर्मकीर्ति के साथ हेमकलश का भी नाम मिलता है, जिन्हें समसामयिकता, नामसाम्य आदि के आधार पर बृहद्तपागच्छीय उक्त हेमकलशसूरि से समीकृत किया जा सकता है। क्षेमकीर्ति के दूसरे शिष्य नयप्रभ का उक्त पट्टावली को छोड़कर अन्यत्र कोई उल्लेख नहीं मिलता।
पर ढुंढिका
के रचनाकार)
इस
कसूर के शिष्य रत्नाकरसूरि एक प्रभावक आचार्य थे। इन्हीं के समय से शाखा का एक अन्य नाम रत्नाकरगच्छ भी पड़ गया। श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने रत्नाकरपंचविंशतिका के कर्ता रत्नाकरसूरि और बृहद्तपागच्छीय रत्नाकरसूरि को एक ही व्यक्ति होने की संभावना प्रकट की है, किन्तु श्री हीरालाल रसिकलाल कापड़िया' ने अभिधानराजेन्द्रकोश का उद्धरण देते हुए रत्नाकरपंचविंशतिका के रचनाकार रत्नाकरसूरि को देवप्रभसूरि का शिष्य बतलाते हुए उक्त कृति को वि०सं० १३०७ में रचित बतलाते हैं। यदि श्री कापड़िया के उक्त मत को स्वीकार करें तो रत्नाकरपंचविंशतिका के कर्ता बृहद्पौशालिक रत्नाकरसूरि नहीं हो सकते क्योंकि उनका समय विक्रम सम्वत् की चौदहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध सुनिश्चित है।
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