Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कंडिका ७५७, ७७५. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ २१३. (१) १५६१ वैशाख सुदि १३ शुक्रवार, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १,
लेखांक ११८३. (२) १५६५ ज्येष्ठ सुदि ६ शुक्रवार, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १,
लेखांक ९८५. (३) १५६६ माघ सुदि ५ सोमवार, जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक
७६६. A.P. Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit & Prakrit Mss: Muni Shree Punya Vijyajis Collection. Part II. L.D.Series No. 5. No.6085. P-390-1. जैनगूर्जरकविओ, भाग १, पृष्ठ २७४-७६.
श्री विनयसागर जी के अनुसार यह प्रशस्ति संभवनाथ जिनालय, गलियाकोट के एक चैत्यालय पर उत्कीर्ण है। उन्होंने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है: ।।ॐ।। संवत् १६३७ वर्षे माह सुदि ५ सोमे वागडदेशे राउल श्रीसहसमलजी विजयराज्ये श्रीकोटनगरवास्तव हुंबडज्ञातीव वृद्धशाखायां। गां० श्रीउदयसिंह सुत गां० नाभा सु० गां० दाखा सुत गां० आणंद भार्या दाडिमदे सुत गां० घीसकर भार्या कनकादे अमरी सुपराणदे रूपादे। सुपराणदे सुत गां० धीरू माऊ वीला भा० कनकादे सुत गां० थीसकरा भार्या कल्याणदे रूपा भार्या केसरदे गां० घीसकर वि। हेनीबाई रङ्गाबाई चगा। समस्त कुटुम्बश्रेयसे श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवलिका कारिता। श्रीचन्द्रप्रभबिंबं स्थापितं श्रीवृद्धतपागच्छे भट्टारिक श्रीधनरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भट्टारिक श्री देवसुन्दरसूरिभिः प्रतिष्ठितं। श्रेयसे। शुभंभवतु। यात्रा शुभंभवतु। श्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्रीश्री पं० विनयचारित्र पं० विमलरत्न पं० जयसिंह पं० वीसल चेला आणंदरत्न लिखितम्।। म०विनयसागर, संपा०-प्रतिष्ठालेखसंग्रह, जिनमणिमाला : चतुर्थमणि, कोटा १९५३ ई०, लेखांक १०३४.
॥ॐ।। संवत् १६३७ वर्षे माह सुदि ५ वागडदेशे राउल श्रीसहसमलजी विजयराज्ये श्रीकोटनगरवास्तव्य हंबडज्ञातीय वृद्धशाखायां गांधी.. श्रीपाल भ्रातृ गां० धीहर जयपाल भार्या सरूपदे सुत गांधी गांगा भार्या मेलादे ह०...................भार्या खीमदे सुत गांधी सांगा गांधी जेवंतया भार्या स०.....मदि सुत गांधी बल गांधी जेवंत भार्या भगादे सुत गांधी भारिमल्ल भार्या मिलापदे समस्तकुटुम्बयुतेन श्रेयसे श्रीसंभवनाथचैत्यालये देवकुलिका कारापिता श्रीवृद्धतपापक्षे भट्टारिक श्रीधनरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भ० श्रीतेजरत्नसूरिभिस्तत्पट्टे भ० श्रीदेवरत्नसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभंभवतु।। वही, लेखांक, १०३३.
॥सम्वत् १६३७ वर्षे फागुण सुदि ५ बुधे बागडदेशे राउलश्री सहसमल श्रीविजयराज्ये श्री गिरपुरवास्तव्य हुंबडज्ञातीय वृद्धशाखीय मढासाआ जीवा भार्या
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