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६. १५२२ संभवनाथ की धातु की प्रतिमा गौड़ीजी का मंदिर, पौष वदि पर उत्कीर्ण लेख
उदयपुर
१. गुरुवार
७.
रत्नशेखरसूरि के पश्चात् लक्ष्मीसागरसूरि तपागच्छ के नायक बने तब सोमदेवसूरि ने अपने शिष्य शुभलाभ को आचार्य पद प्रदान कर सुधानन्दनसूरि नाम दिया। वि०सं० १५११ में लिखी गयी शांतिनाथचरित की प्रतिलेखन प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि उक्त प्रति सोमदेवसूरि के शिष्य के उपदेश से लिखी गयी' । सोमदेवसूरि के एक अन्य शिष्य चारित्रहंसगणि हुए जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती किन्तु इनके शिष्य सोमचारित्र ने वि०सं० १५४१/ ई०स० १४८५ में गुरुगुणरत्नाकरकाव्य की रचना की । इस काव्य में आचार्य लक्ष्मीसागरसूरि का जीवनवृत्तांत वर्णित है।
जैनदेरासर, डभोई
सोमदेवसूरि के एक शिष्य सुमतिसुन्दर हुए जिनके उपदेश से चालिग (?) नामक एक श्रावक, जो राणकपुर स्थित त्रैलोक्यदीपक प्रासाद के निर्माता धरणाशाह के भाई रत्नसिंह का पुत्र और मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी का धर्मभ्राता था, ने राणा लक्षसिंह की अनुमति से अचलगढ़ पर विशाल चौमुख प्रासाद का निर्माण कराया और उसमें पित्तल की १२० मन वजन की जिन प्रतिमा प्रतिष्ठापित करायी।
१.
सुमतिसुन्दरसूरि के उपदेश से मांडवगढ़ के संघवी वेलाक ने सुल्तान से फरमान प्राप्त कर संघ के साथ जीरापल्ली, अर्बुदगिरि, राणकपुर आदि तीर्थों की यात्रा की " । सुधानन्दनसूरि के एक शिष्य (नाम अज्ञात) ने वि०सं० १५३३ / ई०स० १४७७ के आस-पास ईडरगढ़चैत्यपरिपाटी २ की रचना की।
सुमतिसुन्दर के शिष्य कमलकलश हुए। इन्हीं से वि०सं० १५५४ वा १५५५१३ ( अन्य मतानुसार वि० सं० १५७२ १ ४ ) में तपागच्छ की एक नई उपशाखा - कमलकलशशाखा अस्तित्व में आयी। किस कारण से और कहाँ इस शाखा का जन्म हुआ, इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं मिलती।
२.
कमलकलशसूरि द्वारा प्रतिष्ठापित कुछ जिन प्रतिमायें प्राप्त हुई हैं जो वि०सं० १५५१ से लेकर १६०३ तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है
:
वि०सं० तिथि/मिति १५५१ वैशाख सुदि १३ पद्मप्रभ की गुरुवार
प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख
१५५३ वैशाख सुदि
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वही, लेखांक ३६१
लेख का स्वरूप प्राप्तिस्थान महावीरस्वामी का मंदिर, बीकानेर
जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १६
शांतिनाथ की
प्रतिमा पर
उत्कीर्ण लेख
नेमिनाथ का पंचायती बड़ा
मंदिर, अजीमगंज, मुर्शिदाबाद
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संदर्भग्रन्थ
अगरचन्द भंवरलाल
नाहटा,
संपा०बीकानेरजैनलेखसंग्रह, लेखांक १२५३.
पूरनचन्द नाहर, संपा जैनलेखसंग्रह, भाग १, लेखांक १५.
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