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२८२ धार्मिक विधि-विधानों के साथ-साथ विभिन्न तीर्थों की यात्रायें भी की। वि०सं० १७२१ में इनका निधन हुआ।
राजसागरसूरि पर रची गयी तीन रचनायें आज उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार हैं : राजसागरसूरि के प्रशिष्य और वृद्धिसागरसूरि के शिष्य विनयसागर द्वारा रचित राजसागरसूरिसज्झाय (रचनाकाल वि० सं० १७१५) हेमसौभाग्य द्वारा रचित राजसागरसूरिनिर्वाणरास (रचनाकाल वि०सं० १७२१) हेमसौभाग्य ने अपने उक्त कृति में अपनी गुरु-परम्परा इस प्रकार दी है :
वृद्धिसागरसूरि
सत्यसौभाग्य
इन्द्रसौभाग्य
हेमसौभाग्य (वि०सं० १७२१ राजसागरसूरिनिर्वाणरास के कर्ता) तिलकसागर द्वारा रचित राजसागरसूरिनिर्वाणरास' (रचनाकाल वि०सं० १७२१ के आसपास) तिलकसागर ने इस कृति के अन्त में अपनी गुरु-परम्परा दी है जो इस प्रकार है :
वृद्धिसागरसूरि
कृपासागर
तिलकसागर (वि०सं० १७२१ के लगभग राजसागरसूरि निर्वाणरास
के रचनाकार) राजसागरसूरि के प्रशिष्य और शांतिसागर के शिष्य दयासागर ने वि०सं० १७२२ में राजसागरसूरिनिर्वाणरास की प्रतिलिपि की।१०४ ।।
राजसागरसूरि तथा श्रेष्ठी शांतिदास के बारे में उक्त रचनाओं से महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
राजसागरसूरि के पश्चात् उनके पट्टधर वृद्धिसागरसूरि हुए। दीपसौभाग्य द्वारा रचित वृद्धिसागरसूरिरास (रचनाकाल-वि०सं० १७४७ के आसपास) इनके बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। दीपसौभाग्य ने अपनी उक्त कृति के अन्त में अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है :
राजसागरसूरि
वृद्धिसागरसूरि
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