Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

Previous | Next

Page 296
________________ २७६ खण्डित प्रतिमालेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है। लेख का मूलपाठ निम्नानुसार है : संवत् १६६७........ ..........तपागच्छे श्रीहेमसोमसूरिभिः .............. प्रतिष्ठास्थान - शामला पार्श्वनाथ जिनालय, डभोई, बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग १, लेखांक २५. वि०सं० १६४६ में लिखी गयी कल्पान्तरवाच्यवृत्ति की प्रतिलेखन प्रशस्ति में भी इनका नाम मिलता है। इन्हीं के समय वि०सं० १६५४ में संघवीरगणि के शिष्य उदयवीरगणि ने पार्श्वनाथगद्यबन्ध लघुचरित्र की रचना की।८ वि०सं० १६७९ में इनका निधन हुआ। हेमसोमसूरि के पश्चात् विमलसोमसूरि ने इस शाखा का नेतृत्व किया। वि०सं० १६६७ के दो प्रतिमालेखों और वि०सं० १६७१ के एक शिलालेख में इनका नाम मिलता है। इन लेखों की वाचना निम्नानुसार है : संवत् १६६७ वैशाख वदि ७ बुधे श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्य उपकेशज्ञातीयवृद्धशाखायां सा० धर्मसीभा० धर्मादेसुतसा० कर्मसीभार्या .....भार्य सषमादेसुतउदयवंतरहीयायुतेन स्वकुटुम्बशेयोर्थ श्रीआदिनाथबिंबं कारितं तपागच्छे श्रीसोमविमलसूरिपट्टे श्रीहेमसोमसूरिभिः आचार्य श्रीविमलसोमसूरियुतैः प्रतिष्ठितं स्तम्भतीर्थे श्रीप्रतिष्ठाकारि श्रा० पाची।। प्रतिष्ठास्थान - श्री शांतिनाथ जिनालय, कडाकोटड़ी, खंभात बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ६११. संवत् १६६७ वर्षे वैशाखवदि ७ बुधे श्रीस्तम्भतीर्थवास्तव्य ऊकेशज्ञातीयसा० कर्मसीभा० सषमादे स्वकुटुम्बश्रेयसे श्रीसुपार्श्वनाथबिंब कारितं तपागच्छे श्रीसोमविमलसूरिपट्टधारि श्रीहेमसोमसूरिभिः आचार्य श्रीविमलसोमसूरियुतैः प्रति० स्तम्भतीर्थे प्रतिष्ठाकारि श्रा० पांचीकेन।। सुपार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, प्रतिष्ठास्थान - कुन्थुनाथ जिनालय, मांडवीपोल, खंभात, बुद्धिसागरसूरि, पूर्वोक्त, भाग २, लेखांक ६४२. सं० १६७१ वर्षे वैशाख वदि ५ रवौ श्रीवागड़देशमण्डने भूभामिनीभालतिलकायमान सर्वनगर शिरोमणि श्रीगिरिपुरे वागड़महाराउल श्रीपुंजराजजीविजयराज्ये प्रधानपदधारि गांधी रघासुत रत्नगांधी श्रीजोगीदास मेघजीकलाजी विजयिनितन्नगरनिवासि लघुसज्जन प्राग्वाटज्ञाति शृंगारहार श्रेष्ठी मांडण भार्या शीलालंकारधारिणी मनरंगदे नाम्नी तदधिक प्रथमपुत्र सकलगुण सम्पूर्णदानादि कृतसुर होम वत् धर्मभारधुरंधर सुकृतजसवीरभार्या द्विक प्रथम भार्या जोडीमदे द्वितीया पागरदे प्रथम भार्या पुत्र रत्नकहानजी भ्रात॒ जोगा भार्या जोडीमदे पुत्र रहीया भगिनी द्वीकमइत्यादि सकलपरिवार श्रेयोर्थं श्रीसिहलाकारित श्रीपार्श्वनाथभुवने भद्रप्रासादः कारापितः प्रतिष्ठाकारापिता तपागच्छनायक श्रीपूज्यश्री५ श्रीसोमविमलसूरितच्छिष्यकलिकालसर्वज्ञ जगद्गुरु विरुद्धारि संप्रतिविजयमान श्रीपूज्यश्री५ हेमसोमसूरीश्वरपट्ट प्रभाकर तत्क्षण प्रत्यक्षणोत्तमावतार आचार्यश्रीविमलसोमसूरीश्वरआदेशात् महोपाध्याय श्री आनंदप्रमोदगणि शिष्यपंडितश्रेणीशिरोमणि पं० श्रीसकलप्रमोदगणि शिष्य पं० तेजप्रमोदगणि प्रतिष्ठाकृता।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362