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वृद्धतपागच्छ - जयशेखरसूरिशाखा
बृहद् पौशालिक शाखा के अन्तर्गत जैसा कि हम देख चुके हैं यद्यपि जयतिलकसरि के एक शिष्य जयशेखरसूरि की शिष्य सन्तति वृद्धतपागच्छ की एक स्वतंत्रशाखा के रूप में अस्तित्त्व में आयी, तथापि इसका कोई अन्य नाम नहीं मिलता। इस शाखा के मुनिजन स्वयं को वृद्धतपागच्छीय बतलाते हैं अध्ययन की सुविधा के लिये हम इसका नामकरण वृद्धतपागच्छजयशेखरसूरिशाखा कर रहे हैं।
जयशेखरसूरि द्वारा रचित कोई ग्रन्थ नहीं मिलता किन्तु इनके द्वारा वि० सं० १४८८ माघ वदि ४ शुक्रवार को प्रतिष्ठापित अजितनाथ की धातु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जो आज महावीर जिनालय, पायधुनी मुम्बई में संरक्षित है। मुनि कान्तिसागर जी ने इसकी वाचना दी है, जो इस प्रकार है :
सम्वत् १४८८ माघ वदि २ शुक्रे श्री वायडजा(ज्ञा)तीय लींबा भा० चांपलदे सुत सूराकेन भा० सूहवदेसहितेन माताश्रेयसे अजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीबृहत्तपापक्षे श्रीजयशेखरसूरिभिः। जैनधातुप्रतिमालेख, लेखांक ७९
जयशेखरसूरि के शिष्य एवं पट्टधर जिनरत्नसूरि हुए जिनके द्वारा वि० सं० १५०३ से १५४४ के मध्य प्रतिष्ठापित कुछ जिनप्रतिमायें प्राप्त हुई हैं। इनका विवरण इस प्रकार है:
क्रमांक संवत् तिथि/मिति १. १५०३ आषाढ़ सुदि
१०शुक्रवार
लेख का स्वरूप प्रतिष्ठास्थान संदर्भग्रन्थ मुनिसुव्रत की पार्श्वनाथ जिना०, प्राचीनलेखसंग्रह, प्रतिमा पर देलवाड़ा, उदयपुर लेखांक २०० उत्कीर्ण लेख
२.
१५०३
"
वल्लभविहार, पालीताना वालावसही, शत्रुजय
शत्रुजयवैभव लेखांक ९९. वही, लेखांक १३४.
३.
४.
१५१२ वैशाख सुदि ३ वासुपूज्य की
प्रतिमा पर
उत्कीर्ण लेख १५१६ वैशाख सुदि १ चन्द्रप्रभ की सोमवार प्रतिमा पर
उत्कीर्ण लेख १५१७ वैशाखसुदि ३ वासुपूज्य की सोमवार प्रतिमा पर
उत्कीर्ण लेख १५१७ माधवदि ८ सुमतिनाथ की सोमवार प्रतिमा पर
उत्कीर्ण लेख
पार्श्वनाथ देरासर, जैनधातुप्रतिमालेखलाडोल
संग्रह, भाग १,
लेखांक ४६४. वीरजिनालय, वैदों बीकानेरजैनलेखसंग्रह, का चौक, बीकानेर लेखांक १२४५.
५.
शांतिनाथ जिना०, प्राचीनलेखसंग्रह, राधनपुर
लेखांक ३०७.
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