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रत्नाकरसूरि के उपदेश से वि०सं० १३७०/ई०स० १३१४ में स्तम्भतीर्थ में हेमचन्द्रकृत शब्दानुशासन की प्रतिलिपि की गयी। P.Peterson, A Fifth Report of Operation in search of Sanskrit Mss in Bombay Circle. April 1892 - March 1895, P-110 Vidhatri Vora. Ed - Catalogue of Gujrati Mss : Muni Shree Punya Vijay jis Collection. L.D. Series No. 71. Ahmedabad. 1978. A.D. P166. P.Peterson, A Fifth Report of Operation in search of Sanskrit Mss in Bombay Circle, No 51, Ibid. No. 396 वृद्धतपागच्छ/रत्नाकरगच्छ की इस शाखा का विवरण स्वतंत्र रूप से यथा स्थान दिया गया है। जिनरत्नसूरि की शिष्य परम्परा का विवरण इसी आलेख के साथ दिया गया है। मोहनलाल दलीचंददेसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीयसंशोधित संस्करण, संपा०-डा० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८६ ई०स०, पृष्ठ ८५ और आगे. A.P.Shah, Ed. Catalogue of Sanskrit i Prakrit Mss : Muni Shree Punya Vijvajis Collection, Part 1, L.D.Series No.2, Ahmedabad, 1963 A.D.. No - 991. P-81. मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कंडिका ७४९. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ ९८-१०१. अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड १, अहमदाबाद १९५३ ई०, पृष्ठ ११६-११८. विजयधर्मसूरि, संपा०- प्राचीनतीर्थमालासंग्रह, भाग १, भावनगर वि०सं० १९७८ ई०, पृष्ठ ५६-५७. James Burges, Antiquities of Kathiawad and Kuchh, Reprint Varanasi 1971 A.D. Pp. 159-61. जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कंडिका ६८१, ६८६. जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ ६२-६३. मुनि कांतिसागर, शत्रुजयवैभव, जयपुर १९९० ई०स०, पृष्ठ १८६. मुनि कांतिसागर, पूर्वोक्त, पृष्ठ १८७-८८.
जैनगूर्जरकविओ, पूर्वोक्त, भाग १, पृष्ठ १२९-३०. त्रिपुटी महाराज, संपा० - पट्टावलीसमुच्चय, भाग २, श्रीचारित्र स्मारक ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ४४, अहमदाबाद १९५० ई०स०, पुरवणी, पृष्ठ २४०-४१. H.D. Velanker, Jinratnakosha, P - 358. Vidhatri Vora, Catalogue of Gujrati Mss: Muni Shree Punya l'ijayjis Collection, P-850.
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