________________
२४२
-
विनयचन्द्रसूरि
धरच
उदयचन्द्रसूरि
जयचन्द्रसूरि
इस प्रकार विक्रम सम्वत् की १८वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक तपागच्छ की बृहद्पौशालिक शाखा का अस्तित्त्व सिद्ध होता है।
उक्त सभी साहित्यिक और अभिलेखीय साक्ष्यों के आधार पर तपागच्छ की इस प्राचीन शाखा के मुनिजनों का वंशवृक्ष प्रस्तुत है :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org