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२४० लब्धिसागरसूरि
धनरत्नसूरि
मुनिसिंहगणि
नयसिंहगणि (वि० सं० १६२५ के आस-पास
चतुर्विंशतिजिनस्तुति के रचनाकार) नयसिंहगणि द्वारा रचित अन्य कोई कृति नहीं मिलती।
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धनरत्नसूरि के एक शिष्य भानुमेरुगणि हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य नयसुन्दर३ अपने समय के प्रसिद्ध रचनाकार थे। इनके द्वारा रचित कृतियां इस प्रकार हैं :
रूपरत्नमाला २- शत्रुजयोद्धारस्तवन
नवसिद्धिस्तवन सीमंधरवीनतीस्तवन
शत्रुजयउद्धार (वि०सं० १६३८/ई०स० १५७२) ६- स्थूलिभद्रएकबीसो
जुहारमित्रसज्झाय
गिरनारतीर्थोद्धाररास ९- यशोधरनृपचौपाई (वि०सं० १६१८/ई०स० १५५२) १०. रूपचन्द्रकंवररास (वि०सं० १६३७/ई०स० १५७१) ११- गिरनारतीर्थोद्धारप्रबन्ध १२- प्रभावती (उदयन) रास (वि०सं० १६४०/ई०स० १५७४) १३- सुरसुन्दरीरास (वि०सं० १६४६/ई०स० १५९०) १४- नलदमयन्तीचरित्र (वि०सं० १६६५/ई०स० १६०९) १५- शीलशिक्षारास (वि०सं० १६६९/ई०स० १६१३) १६- शंखेश्वरपार्श्वस्तवन १७- पार्श्वनाथस्तवन १८- आत्मबोधकुलक १९- सारस्वतव्याकरणवृत्ति २०. बृहदपोशालिकपट्टावली
नयसुन्दर की शिष्या साध्वी हेमश्री द्वारा रचित कनकावतीआख्यान (रचनाकाल वि०सं० १६४४/ई०स० १५८८) और मौनएकादशीस्तुतिथोयसंग्रह नामक कृतियां मिलती हैं।"
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