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२३७ __लब्धिसागरसूरि के दो शिष्यों- धनरत्नसूरि और सौभाग्यसागरसूरि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। सौभाग्यसागर के शिष्य उदयसौभाग्य द्वारा वि०सं० १५९१ में रचित हेमप्राकृतढुंढिका नामक कृति प्राप्त होती है।३१ इनके एक शिष्य द्वारा रचित चम्पकमालारास (वि० सं० १५७८) नामक कृति मिलती है। इसके रचनाकार ने स्वयं अपना नाम न देते हुए मात्र ‘सौभाग्यसागरसूरिशिष्य'३२ कहा है।
लब्धिसागरसूरि
धनरत्नसूरि
सौभाग्यसागरसूरि
उदयसौभाग्य
सौभाग्यसागरसूरिशिष्य (वि०सं० १५९१ में हैमप्राकृत पर ढुंढ़िका (वि०सं० १५७८ के कर्ता)
में चम्पकमालारास
के रचनाकार) लब्धिसागरसूरि के पट्टधर धनरत्नसूरि का विशाल शिष्य परिवार था जिनमें अमररत्नसूरि, तेजरत्नसूरि, देवरत्नसूरि, भानुमेरुगणि, उदयधर्म, भानुमंदिर आदि उल्लेखनीय हैं। धनरत्नसूरि द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, यही बात इनके पट्टधर अमररत्नसूरि के बारे में कही जा सकती है। अमररत्नसूरि के पट्टधर उनके गुरुभ्राता तेजरत्नसूरि हुए जिनके शिष्य देवसुन्दर का नाम वि०सं० १६३७ के प्रशस्तिलेख२३ में प्राप्त होता है। तेजरत्नसूरि के दूसरे शिष्य लावण्यरत्न हुए जिनकी परम्परा में हुए सुखसुन्दर ने वि०सं० १७३९ में कल्पसूत्रसुबोधिका की प्रतिलिपि की। इसकी प्रशस्ति५ में इन्होंने अपनी गुरु-परम्परा दी है, जो इस प्रकार है:
तेजरत्नसूरि
लावण्यरत्न
ज्ञानरत्न
जयसुन्दर
रत्नसुन्दर
विवेकसुन्दर
सहजसुन्दर
सुखसुन्दर (वि०सं० १९३९ में कल्पसूत्रसुबोधिका के प्रतिलिपिकार)
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