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चूंकि वि० सं० १७०९ में विजयसिंहसूरि का निधन हो गया अतः विजयदेवसूरि के पश्चात् वि०सं० १७१३ में विजयप्रभसूरि ने तपागच्छ का नायकत्व ग्रहण किया।
विजयप्रभसूरि का जन्म वि०सं० १६७७ में कच्छ प्रान्त में हुआ था । वि०सं० १६८६ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और वि० सं० १७१० में इन्हें अपने गुरु विजयदेवसूरि से आचार्य पद प्राप्त हुआ।१०४ उपाध्याय मेघविजय ने इनकी प्रशस्ति के रूप में दिग्विजयमहाकाव्य १०५ की (वि०सं० १७१० के पश्चात् ) रचना की । इन्होंने देश के बड़े भूभाग में विहार किया और श्रावकों को उपदेश देकर अनेक तीर्थों पर जीर्णोद्धार, नवनिर्माण- प्रतिमाप्रतिष्ठापना आदि का कार्य सम्पन्न कराया।
अपने गुरुभ्राता स्व० विजयसिंहसूरि की स्मृति में इन्होंने वि० सं० १७१३ कार्तिक वदि २ को खंभात १०६ में तथा अपने गुरु विजयदेवसूरि की स्मृति में वि० सं० १७१३ माघ सुदि ५ को ऊना १०७ में (जहाँ उनका निधन हुआ था) उनकी चरणपादुका स्थापित करायी। आदिनाथ जिनालय, नाडलाई में संरक्षित मुनिसुव्रत की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि०सं० १७२१ ज्येष्ठ सुदि ३ रविवार के लेख से ज्ञात होता है कि उसकी प्रतिष्ठापना विजयप्रभसूरि के करकमलों से हुई थी । १०८
सुपार्श्वनाथ पंचायती मंदिर, जयपुर में संरक्षित पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि०सं० १७४४ फाल्गुन सुदि १ बुधवार के लेख से ज्ञात होता है कि उक्त प्रतिमा आचार्य विजयप्रभसूरि के निर्देश पर मुक्तिचन्द्रगणि द्वारा स्थापित की गयी । १०९
दिग्विजयमहाकाव्य के दसवें सर्ग १० से ज्ञात होता है कि इन्होंने आगरा में बादशाह जहाँगीर से भेंट की थी। वि० सं० १७४९ में ऊना नामक स्थान पर इनका देहान्त हो गया । १११ विजयप्रभसूरि के पश्चात् विजयरत्नसूरि उनके पट्टधर बने। प्राप्त विवरणानुसार वि०सं०१७१३ में इनका जन्म हुआ। गुरु के निधन के पश्चात् वि०सं० १७४९ में ये उनके पट्ट पर विराजमान हुये और वि०सं. १७७३ में इनका देहान्त हुआ। श्रीपूज्य विजयरत्नसूरि के पश्चात् विजयक्षमासूरि श्रीपूज्य बने । वि० सं० १७३२ में इनका जन्म हुआ । इनके मृत्यु की तिथि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती।
श्रीपूज्य विजयक्षमासूरि के पक्षधर श्रीपूज्य विजयधर्मसूरि हुए। वि० सं० १८२५, १८२८ और १८३९ के लेखों में इनका नाम मिलता है।
इन लेखों का विवरण इस प्रकार है:
१८२५ वैशाख सुदि २ विजयप्रभसूरि
की पादुका पर उत्कीर्ण लेख
१८२८ फाल्गुन सुदि ३ धातुयंत्र पर भृगुवार उत्कीर्ण लेख १८३९ वैशाख सुदि ९ विजयप्रभसूरि की
बुधवार
पादुका पर उत्कीर्ण लेख
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जैनमंदिर, भोई
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जैनधातुप्रतिमालेखसंग्रह, भाग १, लेखांक ११
वही, भाग १,
लेखांक १३२
वही भाग १, लेखांक १२
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