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६५.
२१६ "गुरुपट्टावली', वही, भाग १, पृष्ठ १७३-७४. “वीरवंशावली'', विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, पृष्ठ २२२.
विजयधर्मसूरि, संपा० - ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग ४, भूमिका, पृष्ठ ५-१०. ६४. इस शाखा का स्वतंत्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो इसी पुस्तक में यथास्थान
रखता है।
यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, भावनगर से प्रकाशित. ६६. पट्टावली समुच्चय, भाग १, पृष्ठ ७१-७७.
६७. श्रीकांतिविजय इतिहासमाला, भावनगर से वि० सं० १९७३ में प्रकाशित • ६८. काव्यमालासिरीज, निर्णयसागरप्रेस, मुम्बई से वि० सं० १९०० में प्रकाशित
६९. जैनगूर्जरकविओ, भाग २, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृष्ठ २५७. ७०-७१. मुनि जिनविजय, संपा०- जैनऐतिहासिक गूर्जरकाव्यसंचय, श्रीकांतिविजयजी
जैनऐतिहासिक ग्रन्थमाला, पुष्प ७, भावनगर १९२६ ई०, पृष्ठ १९६-२०५. ७२. जैनसाहित्यनोसंक्षिप्तइतिहास, पृष्ठ ५४०, कंडिका ७९२. ७३. मुनि जिनविजय, पूर्वोक्त, पृष्ठ २०६-२०९.
७४. आनन्दकाव्यमहोदधि. ७५-७६. संपा०- पं० हरगोविन्ददास बेचरदास, यशोविजय जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी वीर
सम्वत् २४३७. ७७. मुनि विद्याविजयजी, सूरीश्वर अने सम्राट, हिन्दीअनुवाद, आगरा वि०सं० १९८०,
पृष्ठ १०७ और आगे. ७८. वही, पृष्ठ १३५, कु० नीना जैन, मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति, शिवपुरी
१९९१ ई०, पृष्ठ ६६.
वही, पृष्ठ १२६. 80. Mohan Lal Dalichand Desui, Ed. Bhanuchandra Gani Charitra,
S.J.S. No. 15, Ahmedabad - Calcutta 1941 A.D., Introduction,
P-9-10. ८० अ. जैनसाहित्यनोसंक्षिप्तइतिहास, पृष्ठ ८१-८२. द्रष्टव्य, संदर्भ क्रमांक ७६-७७. ८३. जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १६६-१७०. ८४. वही, पृष्ठ १५९-१६५. 85. Bhanuchandra Gani Charitra, Introduction, P-10. ८६. वरसिं सोल बहुतरि, खंभनयर चउमास;
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