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साधारणजिनस्तवन भी इन्हीं की कृति है जो अनेकार्थ रत्नमंजूषा, पृष्ठ ८७९० में प्रकाशित है। हीरालाल रसिकलाल कापड़िया, जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास, भाग २, खंड १, बड़ोदरा १९६३ ई० स०, पृष्ठ ४७४. २५-२६. वही, पृष्ठ ४००, ४७४.
२७-२८. मुनि चतुरविजय, जैनस्तोत्रसंदोह, प्रस्तावना, पृष्ठ १०४.
२९. वही, पृष्ठ १०४.
३०.
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३३- ३४.
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इस शाखा का स्वतंत्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो इसी ग्रंथ में यथास्थान प्रकाशित है।
पूज्याराध्यध्येयतम श्रीगच्छाधिराज भट्टारकपुरन्द श्रीसोमसुन्दरसूरि शिष्य शिरोऽवतंसकसकलसकर्णपुरुषश्रेणीप्रणीतपदपद्मसेवभट्टारक प्रभु श्रीसोमदेवसूरि शिष्यशिरोमणिपूज्याराध्य पं० चारित्रहंसगणिपादविनेयपरमाणुनासोमचारित्रगणिना विरचितो ग्रन्थः सम्पूर्णः ॥ गुरुगुणरत्नाकरकाव्य की प्रशस्ति
गुरुगुणारत्नाकरकाव्य, संपा०- मुनि इन्द्रविजय, वाराणसी वीर सम्वत् २४३७. अमृतलाल मगनलालशाह, संपा०- श्रीप्रशस्तिसंग्रह, श्रीदेशविरति धर्माराजकसंघ, अहमदाबाद, वि०सं० १९९३, भाग २, पृष्ठ १६, प्रशस्ति क्रमांक ६३. यह कृति पेथड़ (पृथ्वीघर) और उसके पुत्र झांझड़ की प्रशस्ति के रूप में रची गयी है और आत्मानन्द सभा, भावनगर से प्रकाशित हो चुकी है। H.D. Velankar, Jinaratnakosha, Poona, 1944 A.D. P-443.
४०.
वही, पृष्ठ १०४.
मुनिमृगेन्द्र, संपा० प्रबन्धपंचशती, सूरत १९६८ ई० स०.
वही, प्रस्तावना, पृष्ठ १, पादटिप्पणी.
वही, पृष्ठ २५८, ३५२.
मोहनलाल दलीचंद देसाई, जैनसाहित्यनोसंक्षिप्तइतिहास, पृष्ठ ४९६-५०० कंडिका ७२१-७२६.
विजयधर्मसूरि, संपा० ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग १, भावनगर वि० सं० १९७२, पृष्ठ २७-२९. मुनिकांतिसागर, शत्रुंजयवैभव, पृष्ठ १९३-१९७. ऐतिहासिक राससंग्रह, भाग १, पृष्ठ ३०.
Jinaratnamakosha, P-452-53.
धर्मसागरीय “तपागच्छ पट्टावली", मुनि कल्याणविजय गणि, पट्टावलीपरागसंग्रह, पृष्ठ १५२.
लावण्यसमय गणि, सुमतिसाधुविवाहलो
ऐतिहासिकराससंग्रह, भाग १, पृष्ठ ४१-४८.
जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, संशोधक- संपा०, जयन्तकोठारी, अहमदाबाद १९९७
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