Book Title: Tapagaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith
________________
२१७
८६. वरसिं सोल बहुतरि, खंभनयर चउमास;
करवा श्री अकबर पुरि, आव्या महिम निवासो रे।।४४।। जेठ बहुल एकादशी, प्रह उगमतइ भाण; चउसरणादि समाधिस्युं, हूइ गुरु निरवाणो रे॥४५॥ गुणविजयकृत - “विजयसेनसूरिनिर्वाणभास'
मुनि जिनविजय, संपा०- जैनऐतिहासिकगूर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १७०. ८७.
इस शाखा का स्वतंत्र रूप से इतिहास लिखा गया है जो इसी पुस्तक में यथास्थान
रखता है। ८८-८९. पं० बेचरदास दोशी, संपा० - देवानन्दमहाकाव्य, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक
७, अहमदाबाद-कलकत्ता १९३७ ई०स०, प्रस्तावना, पृष्ठ ८. ९०. वही, प्रस्तावना, पृष्ठ २-३. ९१. पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, संपा०- दिग्विजयमहाकाव्य, सिंघी जैन ग्रन्थमाला,
ग्रन्थांक १४, मुम्बई १९४५ ई०स०, परिशिष्ट, पृष्ठ १३४-१४१. ९२. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ६९-७०. 93-94. Bhanuchandra Gani Charitra, Introduction, P-21. ९५. मुनि जिनविजय, संपा०- विज्ञप्तिलेखसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक,
मुम्बई १९६० ई०स०. संवत् सत्तर तेर आसाढ़ मास नी, सुदि आठमि दिन सुभ परईं ओ, ॥३४।।
"श्रीविजयदेवसूरिनिर्वाण", रचनाकार-सौभाग्यविजय जैनऐतिहासिकगुर्जरकाव्यसंचय, पृष्ठ १७४.
एवं "राससार", वही, पृष्ठ ९०-९२. ९७. जैनगूर्जरकविओ, भाग ९, पृष्ठ ७०. ९८. मुनि जिनविजय, संपा० - विज्ञप्तिलेखसंग्रह, सिंघी जैन ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५१,
मुम्बई १९६० ई०सं०, पृष्ठ १३७-१५०.
वही, पृष्ठ २०५-२१३; १००. वही, पृष्ठ १६२-१६५. १०१. वही, पृष्ठ १५९-१६१. १०२. वही, पृष्ठ १७९-१८४. १०३. वही, पृष्ठ १९५-१९८. १०४. श्रीतपागच्छ पट्टावलीसूत्र वृत्यनुसंधानं, रचनाकार-मेघविजय उपाध्याय, (रचनाकाल
वि० सं० १७३२/ई० सन् १६६६),
पट्टाल्ली समुच्चय, भाग १, पृष्ठ ९८-१०१. १०५. दिग्विजयमहाकाव्य, संपा-पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, सिंघी जैनग्रन्थमाला,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362