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तप के भेद - प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य... 31
है।23 जितना ग्रास मुख में सुखपूर्वक आ सके उतना एक कवल कहलाता है। भगवतीसूत्र के आधार पर जिस व्यक्ति की जितनी खुराक है उसका बत्तीसवाँ भाग ही उस व्यक्ति के लिए एक कवल माना जाता है। 24 जिसके लिए जितने कवल का आहार बताया गया है उससे न्यून भोजन करना भक्तपान ऊनोदरी है। अपने मुख प्रमाण ग्रास के आधार पर इसके पाँच प्रकार है 25अपने आहार का चौथाई अर्थात आठ कवल परिमाण
1. अल्पाहार भोजन करना, अल्पाहार ऊनोदरी तप है।
2. अपार्द्ध – नौ से बारह कवल प्रमाण भोजन करना, अपार्द्ध ऊनोदरी
तप है।
3. द्विभाग तेरह से सोलह कवल प्रमाण भोजन करना, द्विभाग ऊनोदरी तप है।
4. प्रमाणोपेत – सत्रह से चौबीस कवल प्रमाण भोजन करना, प्रमाणोपेत ( पादोन) ऊनोदरी तप है।
5. किञ्चित ऊनोदरी - पच्चीस से इकतीस कवल प्रमाण भोजन करना, किञ्चित ऊनोदरी तप है।
2. क्षेत्र ऊनोदरी - उत्तराध्ययनसूत्र के उल्लेखानुसार गाँव, नगर, राजधानी, निगम, पल्ली, द्रोणमुख, पत्तन, विहार, सेना शिविर, गलियाँ, घर आदि में अथवा इस प्रकार के अन्य क्षेत्र में निर्धारित रूप से भिक्षाटन करना, क्षेत्र ऊनोदरी तप है | 26
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इस ऊनोदरी तप में क्षेत्र का संकोच करने से आहार का संकोच होता है इससे मन- इच्छित आहार प्राप्त नहीं हो सकता । अतः आहार प्राप्त्यार्थ क्षेत्र की मर्यादा करना भी ऊनोदरी तप कहलाता है।
3. काल ऊनोदरी - उत्तराध्ययनसूत्र के निर्देशानुसार दिन के चार प्रहरों में इस प्रकार का अभिग्रह करना कि मैं अमुक प्रहर में भिक्षार्थ जाऊंगा, उस समय भिक्षान्न मिल गया तो भोजन कर लूंगा अन्यथा उपवास करूँगा। इसमें प्रत्येक पौरुषी का भी अलग-अलग भाग करके अभिग्रह किया जा सकता है। जैसे - तृतीय पौरुषी में कुछ समय शेष रहेगा तब भिक्षा के लिए जाऊँगा अथवा उसके चतुर्थ भाग या पञ्चम भाग में भिक्षाटन करूंगा, इस प्रकार की प्रतिज्ञा करके आहार की कमी करना, काल ऊनोदरी तप है। 27