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तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...69 रह सकता। यह वृत्ति छोटे से छोटे जीवों में भी देखी जा सकती है। जैसेचीटियाँ दल बनाकर चलती हैं, मधुमक्खियों का संगठन तो विश्व प्रसिद्ध है, उनमें राजा और रानी भी होते हैं। मधुमक्खियों के आरक्षकों का कथन है कि उनमें मानव की भाँति ही राजव्यवस्था होती है। वनों में पशुओं के भी बड़े-बड़े झुण्ड होते हैं। पक्षीगण भी समूह में रहते हैं और एक-दूसरे का सहयोग भी करते हैं। कहने का अर्थ यह है कि सेवा प्रत्येक प्राणी का निजी धर्म है, आवश्यक कर्तव्य है। इस कर्त्तव्य की परिपालना से पारिवारिक जगत हो या सामाजिक, भौतिक जगत हो या आध्यात्मिक अपरिकल्पित ऊँचाइयों को छुआ जा सकता है। अत: ज्ञानियों ने इसे 'तप' की श्रेणी में स्थान दिया है।
__ इस तपो धर्म का सर्वाधिक महत्त्व यह है कि इससे तीर्थङ्कर नाम गोत्र कर्म का उपार्जन होता है। इस विश्व में दो पद सर्वोत्कृष्ट हैं- भौतिक ऐश्वर्य की दृष्टि से चक्रवर्ती का और आध्यात्मिक ऐश्वर्य की दृष्टि से तीर्थङ्कर का। चक्रवर्ती विश्व का सबसे बड़ा सम्राट होता है और तीर्थङ्कर विश्व के अद्वितीय पुरुष होते हैं।
एक बार भगवान महावीर से गौतम प्रभु ने प्रश्न किया कि वैयावृत्य के द्वारा आत्मा को किस फल की प्राप्ति होती है ? भगवान ने उत्तर दिया -
__ "वेयावच्चेण तित्थयर नाम गोयं कम्मंनिबंधेई"
वैयावृत्य करने से आत्मा तीर्थङ्कर नाम गोत्र कर्म का बन्धन करती है।128 ज्ञाताधर्मकथासूत्र में तीर्थङ्कर कर्मोपार्जन के बीस उपाय बताये गये हैं। उनमें आठ कारण तो सेवा से ही सम्बन्धित है।129 इससे स्पष्ट होता है कि धर्माराधना के क्षेत्र में सेवा का कितना बड़ा महत्त्व है। इन्हीं बीस स्थानों को दिगम्बर आचार्यों ने सोलह कारण भावनाएँ बताई हैं और उनमें भी वैयावृत्य, विनय एवं वत्सलता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भगवान् ऋषभदेव के पुत्र भरत और बाहुबली के जीवन चरित्र से यह भी स्पष्ट होता है कि सेवा से लोकोत्तर बल व लौकिक वैभव की प्राप्ति भी सहज होती है। ___ उत्तराध्ययनसूत्र में वैयावृत्य का फल बताते हुए कहा गया है कि गुरु और साधर्मिक की शुश्रुषा से जीव विनय को प्राप्त करता है। विनय प्राप्ति से गुरु का अविनय या परिवाद नहीं होता, उसके परिणामस्वरूप वह नरक गति, तिर्यञ्च गति तथा मनुष्य और देव-सम्बन्धी दुर्गति का निरोध करता है, पूज्यों की भक्ति,