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188...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक चार उपवास होने से ये दो सौ बावन उपवास तथा तिरसठ इन्द्रक सम्बन्धी तिरसठ बेला होते हैं। तिरसठ बेला के बाद एक तेला होता है इस प्रकार 252 उपवास 63 बेला और 1 तेला सब मिलाकर तीन सौ सोलह स्थान होते हैं, अत: इतने ही पारणे होते हैं। यह व्रत पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा के क्रम से होता है। चारों दिशाओं के चार उपवास के बाद बेला होता है। इसमें कुल छह सौ सत्तानवे दिन लगते हैं। इस व्रत को करने वाला मनुष्य विमानों का स्वामी होता है।
18. शातकुम्भ व्रत - शातकुम्भ व्रत जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से तीन प्रकार का है। उनमें जघन्य शातकुम्भ व्रत इस प्रकार है- एक ऐसा प्रस्तार बनायें जिसमें एक से लेकर पाँच तक के अक्षर पाँच, चार, तीन, दो, एक के क्रम से लिखें। तदनन्तर प्रथम अंक अर्थात पाँच को छोड़कर अवशिष्ट अंकों को चार, तीन, दो, एक के क्रम से तीन बार लिखें। सब अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतने पारणे जानें। इस व्रत में पैंतालीस उपवास और सत्तर पारणे होते हैं, ऐसे यह तप बासठ दिन में पूर्ण होता है।
मध्यम शातकुम्भ व्रत विधि - एक ऐसा प्रस्तार बनायें जिसमें एक से लेकर नौ पर्यन्त तक के अंक नौ, आठ, सात, छह, पाँच, चार, तीन, दो, एक के क्रम से लिखें। तदनन्तर प्रथम अंक अर्थात नौ को छोड़कर आठ-सात आदि के क्रम से अवशिष्ट अंकों को तीन बार लिखें। सब अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों, उतने पारणे जानें। इस व्रत में एक सौ तिरपन उपवास और तैंतीस पारणे होते हैं। यह व्रत एक सौ छयासी दिन में पूर्ण होता है।
उत्कृष्ट शातकुम्भ व्रत विधि - एक ऐसा प्रस्तार बनायें जिसमें एक से लेकर सोलह तक के अंक सोलह, पन्द्रह, चौदह आदि के क्रम से एक तक लिखें। फिर प्रथम अंक को छोड़कर अवशिष्ट अंकों का जितना जोड़ हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतने पारणे जानें। इस व्रत में चार सौ छयानबे उपवास और इकसठ पारणे आते हैं। यह विधि पाँच सौ सत्तावन दिन में पूर्ण होती है।
19. चान्द्रायण व्रत - चान्द्रायण व्रत चन्द्रमा की गति के अनुसार होता है। इस व्रत को करने वाला अमावस्या के दिन उपवास करता है, फिर प्रतिपदा