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192... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति- इन तीन गुप्तियों तथा ईर्या, आदान, निक्षेपण और प्रतिष्ठापन समिति- इन तीन समितियों में प्रत्येक के नौ कोटियों की अपेक्षा नौ-नौ उपवास ऐसे कुल तीन गुप्तियों के सत्ताईस उपवास एकान्तर पारणे से होते हैं। इसी तरह तीन समितियों के भी सत्ताईस उपवास एकान्तर जानना चाहिए।
भाषा समिति में 1. भाव सत्य, 2. उपमा सत्य, 3. व्यवहार सत्य, 4. प्रतीत सत्य, 5. सम्भावना सत्य, 6. जनपद सत्य, 7. संवृत्ति सत्य, 8. नाम सत्य, 9. स्थापना सत्य और 10. रूप सत्य- इन दस प्रकार के सत्य वचनों का नौ कोटियों से पालन करना होता है । इस अभिप्राय से भाषा समिति में नब्बे उपवास एकान्तर पारणे से होते हैं।
एषणा समिति में नौ कोटियों से लगने वाले छियालीस दोषों को नष्ट करने के लिए चार सौ चौदह उपवास एकान्तर से होते हैं। इस प्रकार तेरह प्रकार के चारित्र को शुद्ध रखने के लिए चारित्र शुद्धि व्रत में सब मिलाकर एक हजार दो सौ चौंतीस उपवास छह वर्ष, दश माह, आठ दिन में पूरे होते हैं ।
27. एक कल्याण तप पहले दिन नीरस आहार लेना, दूसरे दिनदिन के पिछले भाग में अर्ध आहार लेना, तीसरे दिन एकस्थान - भोजन के लिए बैठने पर एक बार जो भोजन सामने आये उसे ही ग्रहण करना, चौथे दिन उपवास करना और पाँचवें दिन आचाम्ल - इमली के साथ केवल भात ग्रहण करना, एक कल्याणक व्रत है।
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28. पंच कल्याण तप जो विधि एक कल्याण व्रत में कही गयी है उसे समता, वन्दना आदि आवश्यक कार्य करते हुए पाँच बार करना पंचकल्याणक तप है। यह पंच कल्याणक व्रत चौबीस तीर्थङ्करों को लक्ष्य करके किया जाता है। 29. शील कल्याणक तप चतुर्थ ब्रह्मचर्य महाव्रत में जो एक सौ अस्सी उपवास बतलाये हैं उनमें उपवास कर लेने पर शील कल्याणक व्रत पूर्ण होता है। इस व्रत में 360 दिन लगते हैं।
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30. भावना व्रत अहिंसादि महाव्रतों में प्रत्येक व्रत की पाँच-पाँच भावनाएँ हैं। एकत्रित करने पर पाँच व्रतों की पच्चीस भावनाएँ होती हैं। उन्हें लक्ष्य कर पच्चीस उपवास एकान्तर पारणे से करना भावना नाम का व्रत है। यह पचास दिन में पूर्ण होता है।