Book Title: Tap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 259
________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर एवं दिगम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...193 31. पंचविंशति कल्याण भावना व्रत - पच्चीस कल्याण भावनाएँ हैं, उन्हें लक्ष्य कर इस व्रत में पच्चीस उपवास एकान्तर से किये जाते हैं। 1. सम्यक्त्व भावना, 2. विनय भावना, 3.ज्ञान भावना, 4. शील भावना, 5. सत्य भावना, 6. श्रुत भावना, 7. समिति भावना, 8. एकान्त भावना, 9. गुप्ति भावना, 10. ध्यान भावना, 11. शुक्ल ध्यान भावना, 12. संक्लेश निरोध भावना, 13. इच्छा निरोध भावना, 14. संवर भावना, 15. प्रशस्तयोग, 16. संवेग भावना, 17. करुणा भावना, 18. उद्वेग भावना, 19. भोगनिर्वेद भावना, 20. संसारनिर्वेद भावना, 21. भुक्ति वैराग्य भावना, 22. मोक्षभावना, 23. मैत्री भावना, 24. उपेक्षा भावना और 25. प्रमोदभावना, ये पच्चीस कल्याण भावनाएँ हैं। 32. दुःखहरण व्रत - दुःखहरण व्रत में सर्वप्रथम सात भूमियों की जघन्य और उत्कृष्ट आयु की अपेक्षा चौदह उपवास करना चाहिए। तदनन्तर तिर्यञ्चगति के पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों की द्विविध आयु की अपेक्षा चार उपवास करना चाहिए। उसके बाद मनुष्यगति के पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों की द्विविध आयु की अपेक्षा चार उपवास करना चाहिए। फिर देवगति में ऐशान स्वर्ग तक के दो, उसके आगे अच्युत स्वर्ग तक के बाईस, फिर नौ ग्रैवेयकों के अठारह, नौ अनुदिशों के दो और पंचानुत्तर विमानों के दो इस प्रकार सब मिलाकर अड़सठ उपवास करना चाहिए। इस व्रत में दो उपवास के बाद एक पारणा होता है। इस तरह अड़सठ उपवास और चौंतीस पारणे दोनों को मिलाकर यह विधि एक सौ दो दिन में पूर्ण होती है। इस विधि के करने से सब दुःख दूर हो जाते हैं। 33. कर्मक्षय व्रत - कर्मक्षय तप में नाम कर्म की तिरानबे प्रकृतियों से लेकर समस्त कर्मों की जो एक सौ अड़तालीस उत्तर प्रकृतियाँ हैं उन्हें लक्ष्य कर एक सौ अड़तालीस उपवास एकान्तर से करना चाहिए। इस प्रकार दो सौ छियानबे दिन में यह व्रत पूर्ण होता है। इस व्रत के प्रभाव से कर्मों का क्षय होता है। ___34. जिनेन्द्रगुणसम्पत्ति व्रत - इस तप में पाँच कल्याणकों के पाँच, चौतीस अतिशयों के चौतीस, आठ प्रातिहार्यों के आठ और सोलह कारण भावनाओं के सोलह इस प्रकार त्रेसठ उपवास एकान्तर पारणे से किये जाते हैं।

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