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उपसंहार...233 किये गये हर कार्य की लाभ-हानि एक सी नहीं रहती, जैसे- भोजन का पाचन आदि कार्य दिन के समय में जितना अच्छे से होता है रात्रि में अधिक शक्ति का व्यय होकर भी उतना शारीरिक लाभ प्राप्त नहीं होता। उपवास करने से शारीरिक प्रतिरोधात्मक शक्ति (Emunity) का जागरण होता है। इससे फेगोसाइव्स और लिम्फोसाइट्स की क्षमता में वृद्धि होती है जो कि रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति के रूप में विजातीय तत्त्वों का प्रतिकार करते हैं। इससे वृद्धावस्था भी जल्दी नहीं आती।
जिस प्रकार पूरा सप्ताह काम करने के बाद रविवार को अवकाश आवश्यक प्रतीत होता है जिससे एक दिन आराम मिल सके तथा अपूर्ण कार्य पूर्ण किये जा सकें, वैसे ही सप्ताह में एक दिन उपवास करने से पाचन तन्त्र सम्बन्धी रोगों पर नियन्त्रण किया जा सकता है। उससे पाचन तन्त्र की सफाई एवं रक्त की शुद्धि हो जाती है। आहार जहाँ शरीर को आवश्यक ऊर्जा एवं गर्मी प्रदान करता है वहीं उपवास शरीर को आरोग्य और शुद्धि देता है।
एकासना, ऊनोदरी आदि तप करने पर अर्थात् भूख से कम आहार करने पर आयु में वृद्धि होती है, शरीर स्वस्थ रहता है तथा शरीर में वृद्धावस्था के लक्षण जल्दी नहीं आते, क्योंकि भूख से कम खाने से शरीर में एकत्रित ग्लाइकोसायलेशन एण्ड प्रोडक्ट नामक रसायन जो कि अधिक एकत्रित होने पर शरीर की कार्य क्षमता को कम कर देता है उसका उपयोग हो जाता है। कायक्लेश, प्रतिसंलीनता, रस परित्याग से इन्द्रियाँ वश में रहती हैं और शारीरिक ऊर्जा का अनावश्यक अपव्यय नहीं होता । शरीर को विकृत करने वाले मधु, मांस, मक्खन और मदिरा इन चार का पूर्ण त्याग तथा दूध, दही, घी, तेल आदि का आंशिक त्याग कर आयंबिल आदि तप करने से रोगों पर नियन्त्रण, रक्त एवं पाचन वृद्धि तथा मोटापा, मधुमेह आदि नियन्त्रित होते हैं।
आभ्यन्तर तप के माध्यम से अहंकार, अविवेक, असजगता, प्रमाद को कम कर क्रोध आदि कषायों को नियन्त्रित किया जा सकता है जिससे ग्रन्थियों के स्राव सन्तुलित होते हैं तथा प्रशान्त भावों की जागृति होती है। फलस्वरूप मन एवं दिमाग शान्त रहता है, जिससे शारीरिक ऊर्जा एवं