Book Title: Tap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 301
________________ उपसंहार...235 है। वैयक्तिक समस्याओं में मुख्य रूप से शरीर सम्बन्धी समस्याएँ जैसे कि मोटापा, पाचन तन्त्र की गड़बड़ी से उद्भूत समस्याएँ, अनिद्रा, अतिनिद्रा, मधुमेह, हृदय आदि कई बीमारियों का नियन्त्रण, विगय त्याग, अनशन, ऊनोदरी के माध्यम से किया जा सकता है। समभाव एवं स्वरमणता से पारिवारिक, सामाजिक, साम्प्रदायिक क्लेश उत्पन्न नहीं होते। समाज एवं परिवार में सुख, शान्ति और सौहार्द की स्थापना होती है जिससे समाज एवं राष्ट्र उत्तरोत्तर प्रगति करते हैं। समाज में व्याप्त आहार-सम्बन्धी समस्याएँ जैसे कि भूखमरी, अति आहार, विषाक्त आहार के कारण बढ़ते रोग एवं मृत्युदर को कम किया जा सकता है। पाश्चात्य अनुकरण के कारण चटपटे भोजन या त्वरित भोजन (Fast Food) में बढ़ रही आसक्ति को नियन्त्रित किया जा सकता है। समाज में बढ़ रहे अपराधों पर प्रायश्चित्त के द्वारा आत्म जागृति प्रकट कर उन्हें कम कर सकते हैं। बढ़ते महिलाश्रम, वृद्धाश्रम, विधवाश्रम एवं अनाथाश्रमों को रोकने हेतु वर्तमान पीढ़ी में विनय, वैयावच्च, सेवा आदि के संस्कारों का निर्माण आवश्यक है। आज व्यक्ति ज्ञान के क्षेत्र में विकास तो कर रहा है पर वह मात्र एक तरफा विकास है जिसके कारण स्वार्थवृत्ति, अहंकार, आग्रहवाद आदि में वृद्धि हो रही है। स्वाध्याय के द्वारा सद्ज्ञान का विकास कर जीवन को एक सही दिशा एवं दशा प्रदान की जा सकती है। इस प्रकार अनेक समस्याओं के समाधान में तप बहुत सहायक हो सकता है।

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