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भारतीय परम्पराओं में प्रचलित व्रतों ( तपों) का सामान्य स्वरूप...203
अध्यात्म है, जिसमें नृत्य तथा संगीत आदि के साथ उत्सव मनाना अनुचित है जबकि कुछ लोग इसे भी धार्मिक प्रक्रिया से जोड़कर नाच-गान के साथ उत्सव मनाते हैं।
बौद्ध-धर्मावलम्बियों का सबसे प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण उत्सव वैशाख पूर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है, जिसे वे शाक्यमुनि के जन्म-दिवस के रूप में मनाते हैं। इसी दिन महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था और आज ही के दिन उनका महाप्रयाण भी हुआ था। अतएव यह दिन उनके परिनिर्वाणदिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग प्रभातफेरी करते हैं, गौतम बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष प्रार्थना-पूजन करते हैं और बौद्ध भिक्षुओं को भोजन कराते हैं। सायंकाल मन्दिरों में दीपक और मोमबत्ती जलाते हैं। इस महोत्सव में श्रीलङ्का, थाईलैण्ड, बर्मा, मलेशिया, जापान, नेपाल, कम्बोडिया, ताईवान, चीन, तिब्बत, कोरिया तथा अन्य देशों के बौद्ध-धर्मानुयायी साथसाथ शामिल होकर इसे मनाते हैं। विभिन्न देशों के श्रद्धालुओं द्वारा इस उत्सव के मनाये जाने का तरीका एक समान नहीं होता है, अपितु वे अपने देश के रीति-रिवाज के अनुसार मनाते हैं। यद्यपि यह उत्सव हर्षोल्लास का प्रतीक है; किन्तु लोग इस आनन्द का अनुभव अत्यन्त शान्तिपूर्ण तरीके से करते हैं। श्रद्धालुजन बुद्ध के उपदेशों तथा उनके ईश्वरीय चरित्रों को अपने मन में धारण कर विश्व शान्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
बौद्ध भिक्षुओं के तीन माह के 'वस्सावास' (वर्षाकालीन निवास) की अवधि के अनन्तर कार्तिक पूर्णिमा के दिन एक अन्य आध्यात्मिक पर्व मनाया जाता है। वर्षा ऋतु में बौद्ध भिक्षु मठों में निवास करते हैं और इस अवधि के बाद ही वे बाहर निकलते हैं। इस दिन लोग प्रातःकालीन प्रार्थना-पूजन के पश्चात् दोपहर से पूर्व ही भिक्षुओं को भोजन कराते हैं और उन्हें उपहार स्वरूप वस्त्र प्रदान करते हैं। इसे 'चीवरदान' (वस्त्रदान) कहा जाता है। तत्पश्चात् लोग दिन का शेष भाग ध्यान तथा पूजन में व्यतीत करते हैं और शाम को मन्दिरों तथा स्तूपों पर दीपक एवं मोमबत्तियाँ जलाते हैं।
बौद्धों के द्वारा एक अन्य महत्त्वपूर्ण उत्सव आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन को अपार श्रद्धा के साथ पर्व रूप में मनाने के दो मूलभूत कारण हैं। पहला तो यह कि इसी दिन महात्मा बुद्ध सत्य की खोज में महान्