Book Title: Tap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 288
________________ 222...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक युक्त (पीतल)• जर्मन थाली (पूजा हेतु) • जर्मन कटोरी • पूजा की जोड़ी • सामायिक की जोड़ी • पुस्तक रखने की ठवणी • अंगलूछण वस्त्र • ऊनी कंबली • दंडा • दंडासन की डंडी • मोर पीछी • साधु- साध्वियों के उपयोगी पात्र आदि। उद्यापनकर्ता को कुछ निर्देश • जीतव्यवहार के अनुसार हर एक तपस्या में प्रतिदिन परमात्म पूजा, ज्ञान-ज्ञानियों की भक्ति, साधर्मिक सुश्रुषा, चारित्रधारियों का विनय-वैयावृत्य आदि करना चाहिए, इससे त्याग भाव का पोषण और तप साधना का सौन्दर्य खिलता है। • यदि प्रतिकूलता या असमर्थतावश तप की पूर्णाहुति पर अधिक कुछ न कर पायें तो कम से कम स्वशक्ति के अनुसार जिनेश्वर प्रभु की आडम्बर पूर्वक पूजा करें। ज्ञान के उत्तमोत्तम साधनों को एकत्रित करें। गुरु भगवन्तों को स्व नगर में आमन्त्रित कर तथा साधर्मिकों को स्व घर में बुलाकर अन्नादि, धन-धान्यादि, वस्त्र-अलंकार आदि के द्वारा उनकी भक्ति-सेवा प्रत्येक प्रकार से करें। • उद्यापन तप पूर्ण होने के बाद ही किया जाता हो ऐसा नहीं है, उसे आदि, मध्य या अंत में यथा संयोग कर सकते हैं। __ • उद्यापन में रखी गई सामग्री गुरु और संघ की साक्षी से श्रीसंघ को सुपुर्द कर देनी चाहिए, उन उपकरणों का स्वयं के लिए उपयोग नहीं कर सकते हैं जितनी शीघ्र हो उतनी जल्दी वह सामग्री सुयोग्य स्थान पर दे देनी चाहिए। . उद्यापन में जो कुछ सामग्री रखी जाये वह असली, प्रशस्त एवं शुभ भाव उत्पन्न हो वैसी होनी चाहिए। देव-गुरु और संघ की आशातना अथवा लघुता हो वैसी कोई सामग्री नहीं रखनी चाहिए। ___हिन्दू-परम्परा में भी व्रत-उद्यापन की परम्परा मौजूद है। यहाँ भी अधिकांश तपों (व्रतों) का अपनी-अपनी विधि के अनुसार उद्यापन किया जाता है। इस विषयक विस्तृत जानकारी हेतु हिन्दू धर्म के नारदीय पुराण, संहिता, उपनिषद् आदि ग्रन्थों का आलोडन करना चाहिए। तुलनात्मक अध्ययन भगवान महावीर ने तप का मूल्यांकन करते हुए कहा है कि तप आत्मा के परिशोधन की प्रक्रिया है, आबद्ध कर्मों के क्षय करने की पद्धति है, तप से पूर्व

Loading...

Page Navigation
1 ... 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316