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226... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
एवं परिशुद्धि से युक्त, चतुर्थ ध्यान ।
इस प्रकार चारों ध्यान जैन - परम्परा में भी थोड़े शाब्दिक अन्तर के साथ उपस्थित हैं।
योग - परम्परा में भी समापत्ति के चार प्रकार बतलाये हैं जो कि जैन - परम्परा के समान ही लगते हैं। वे चतुर्विध समापत्तियाँ निम्नानुसार हैं
(i) सवितर्का, (ii) निर्वितर्का, (iii) सविचारा, (iv) निर्विचारा ।
इस विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन - साधना में जिस सम्यक् तप का विधान है वह अन्य भारतीय आचार दर्शनों में भी सामान्यतया स्वीकृत रहा है।
जैन, बौद्ध और गीता - इन त्रिविध परम्पराओं में सर्वाधिक मत वैभिन्य उपवास तप या अनशन तप को लेकर है । बौद्ध और हिन्दू के आचार- दर्शन उपवासों की लम्बी तपस्या को इतना महत्त्व नहीं देते जितना कि जैन विचारणा देती है। इसका मूल कारण यह है कि उक्त दोनों परम्पराओं ने तप की अपेक्षा योग को अधिक महत्त्व दिया है यद्यपि जैन दर्शन की तप साधना योग-साधना से भिन्न नहीं है। पतञ्जलि ने जिस अष्टांगयोग मार्ग का उपदेश दिया वह कुछ तथ्यों को छोड़कर जैन- विचारणा में भी उपलब्ध है।
सन्दर्भ - सूची
1. समदर्शी हरिभद्र, पृ. 67
2. वही, पृ. 67
3. वही, पृ. 67-68
5. गीता, 17, 14-16
6. वही, 17, 17-19
7. जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, भा. 2, पृ.
111
8. वही, पृ. 112-114