________________
तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...71 "सुष्ठु आ मर्यादया अधीयते इति स्वाध्यायः"- सत शास्त्रों का मर्यादा (विधि) पूर्वक अध्ययन करना स्वाध्याय है।133 ___आवश्यकटीका के अनुसार “अध्ययनं अध्यायः शोभनो अध्यायः स्वाध्यायः" श्रेष्ठ अध्ययन का नाम स्वाध्याय है।134
कुछ विद्वानों ने स्वाध्याय शब्द की व्यत्पत्ति करते हए बतलाया है - "स्व स्व स्वस्मिन् अध्यायः-अध्ययनं स्वाध्यायः" स्वयं के द्वारा स्वयं का अध्ययन करना, आत्मचिन्तन करना स्वाध्याय है।135
आवश्यकचूर्णि के अनुसार स्वाध्याय श्रुतधर्मरूप है तथा सामायिक से द्वादशांगपर्यन्त आगमों का परिशीलन करना स्वाध्याय है।136
टीकाकार शान्त्याचार्य ने स्वाध्याय का निरूक्त करते हुए कहा है कि "प्रवचनं श्रुतमित्यर्थस्तद्धर्मः स्वाध्यायः" अर्थात प्रवचन का अर्थ श्रुत है उस श्रुतधर्म का आचरण करना स्वाध्याय है।137
इन परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि स्वयं का चिन्तन करना एवं सम्यक् शास्त्रों का अध्ययन करना स्वाध्याय है।
प्रकार- जैनागमों में स्वाध्याय के पांच रूप बताये गये हैं जो निम्न
हैं-138
1. वाचना - आचार्य या सद्गुरु के मुख से सूत्र-पाठ ग्रहण कर यथावत उसका उच्चारण करना और सूत्र आदि का अर्थ सुनना एवं जानना वाचना कहलाता है।
2. पृच्छना - अज्ञात विषय की जानकारी हेतु या ज्ञात विषय की विशेष जानकारी के लिए प्रश्न करना, सूत्र-अर्थ पर चिन्तन-मनन करना एवं अनिर्णीत विषयों का समाधान पाना, पृच्छना स्वाध्याय है।
3. परिवर्तना - परिचित या कण्ठस्थ सूत्रों एवं विषयों को स्थिर रखने के लिए उसे बार-बार दोहराना, परिवर्तना स्वाध्याय है। इस स्वाध्याय को अपनाने से अधीत ज्ञान विस्मृत नहीं होता।
4. अनुप्रेक्षा - परिचित, कण्ठस्थ एवं स्थिर सूत्र-अर्थादि का तात्त्विक दृष्टि से गम्भीर चिन्तन करना, अनुप्रेक्षा स्वाध्याय है। इस स्वाध्याय से ज्ञान की सूक्ष्मता बढ़ती है और उसके नवीन रहस्य उद्घाटित होते हैं। फलत: स्वाध्याय रुचि एवं श्रद्धा प्रगाढ़ होती है।