Book Title: Tap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Author(s): Saumyagunashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith

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Page 236
________________ 170... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक 4. कल्याणक तप 5. सर्वाङ्गसुन्दर तप 6. निरुजशिखा तप 7. परमभूषण तप 8. आयतिजनक तप 9. सौभाग्य कल्पवृक्ष तप 10 इन्द्रियजय तप 11. कषायमंथन तप 12. योगशुद्धि तप 13. अष्टकर्मसूदन तप 14. ज्ञान-दर्शन-चारित्र तप 15. रोहिणी तप 16. अम्बा तप 17. श्रुतदेवता तप 18. ज्ञानपंचमी तप 19. नन्दीश्वर तप 20 सत्य सुख सम्पत्ति तप 21. पुण्डरीक तप 22. तीर्थङ्कर मातृ तप 23. समवसरण तप 24 अक्षयनिधि तप 25. स्थविर वर्धमान तप 26. दवदन्ती तप 27. अष्टकर्मउत्तर- प्रकृति तप 28. चन्द्रायण तप 29. ऊनोदरी तप 30. भद्र तप 31. महाभद्र तप 32. भद्रोत्तर तप 33. सर्वतोभद्र तप 34. एकादश अंग तप 35. द्वादशांग तप 36. चतुर्दशपूर्व आराधना तप 37. अष्टापद तप 38. एक सौ सत्तर जिन आराधना तप 39. नवकार तप 40. बीस स्थानक तप 41. धर्मचक्र तप 42. सांवत्सरिक तप 43. बारहमासिक तप 44. अष्टमासिक तप 45. छहमासिक तप। इनके अतिरिक्त माणिक्यप्रस्तारिका, मुकुटसप्तमी, अमृत अष्टमी, अविधवादशमी, गौतमपड़वा, मोक्षदण्डक, अदुःखदीक्षिता, अखण्डदशमी आदि तपों का नामोल्लेख करते हुए यह सूचन दिया है कि ये तप आगम एवं गीतार्थ द्वारा आचरित न होने के कारण इनका विवेचन नहीं किया है। ग्यारह अंग, अष्टापद आदि तप विशेष स्थविरों (गीतार्थों) द्वारा अप्रवर्तित होने पर भी आराधना के योग्य हैं, इसलिए उनका वर्णन किया है तथा एकावली, कनकावली, रत्नावली, मुक्तावली, गुणरत्नसंवत्सर, क्षुद्रमहल्ल, सिंहनिष्क्रीड़ित आदि तप विशेष वर्तमान में दुष्कर होने से इनका स्वरूप नहीं बतलाया है। इस तरह विधिमार्गप्रपा में अतिरिक्त बहुत से तपों का नाम निर्देश है। (14वाँ द्वार) आचार्य वर्धमानसूरि (15वीं शती) रचित आचारदिनकर में निर्दिष्ट तप आचारदिनकर में लगभग 100 तपों का निरूपण करते हुए उन्हें तीन भागों में इस तरह विभक्त किया है - 1. तीर्थङ्कर प्ररूपित तप 2. गीतार्थ प्ररूपित तप और 3. सामान्य रूप से आचरित तप । इन तपों की नाम सूची यह है • 1. उपधान तप 2. श्राद्धप्रतिमा तप 3. यतिप्रतिमा तप 4. योग तप 5. इन्द्रियजय तप 6. कषायजय तप 7. योगशुद्धि तप 8. धर्मचक्र तप, 9-10. अष्टाह्निकाद्वय तप 11. कर्मसूदन तप । -

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