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184...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक सूचक सोलह तक बिन्दुएँ रखें। फिर बायीं ओर से दाहिनी ओर गोलाकार बढ़ाते हुए बत्तीस बेलाओं के बत्तीस द्विक लिखें और उनके नीचे चार बेलाओं के सूचक चार द्विक लिखें। तीस द्विक के ऊपर सोलह आदि उपवासों के सूचक सोलह से लेकर एक तक बराबरी में सोलह पन्द्रह आदि बिन्दुएँ करें और उसके आगे आठ बेलाओं के सूचक आठ द्विक, तीन बेलाओं के सूचक तीन द्विक, दो बेलाओं की सूचक दो द्विक तथा एक बेला का सूचक एक द्विक लिखें। इस व्रत में छप्पन द्विक के द्विगुणित एक सौ बारह तथा दोनों ओर की षोडशियों के दो सौ बहत्तर इस प्रकार सब मिलाकर तीन सौ चौरासी उपवास और अट्ठासी स्थानों के अट्ठासी पारणे होते हैं। यह व्रत एक वर्ष तीन माह और बाईस दिन में पूरा होता है। इस व्रत के फलस्वरूप रत्नत्रय में निर्मलता आती है। इसकी विधि इस प्रकार है
एक बेला एक पारणा, एक बेला एक पारणा इस क्रम से दश बेला दश पारणा, फिर एक उपवास एक पारणा, दो उपवास एक पारणा, तीन उपवास एक पारणा, चार उपवास एक पारणा। इस क्रम से सोलह उपवास तक बढ़ाना चाहिए। फिर एक बेला एक पारणा इस क्रम से तीस बेला तीस पारणा, फिर षोडशी के सोलह उपवास एक पारणा, पन्द्रह उपवास एक पारणा, इस क्रम से एक उपवास एक पारणा तक आना चाहिए। फिर एक बेला एक उपवास के क्रम से बारह बेला और बारह पारणे के पश्चात नीचे के चार बेले और चार पारणे करने चाहिए।
15. सिंहनिष्क्रीडित व्रत - सिंहनिष्क्रीडित व्रत जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से तीन प्रकार का है। उनमें जघन्य सिंहनिष्क्रीडित व्रत का क्रम इस प्रकार है- एक ऐसा प्रस्तार बनायें जिसमें एक से लेकर पाँच तक के अंक दो बार आ जायें तथा वे पहले के अंकों में दो-दो अंकों की सहायता से एकएक बढ़ता और घटता जाये इस रीति से लिखे पुन: पाँच से लेकर एक तक के अंक भी दो-दो बार पूर्वोक्त क्रम से लिखें। समस्त अंकों का जोड़ करने पर जितनी संख्या हो उतने उपवास और जितने स्थान हों उतने पारणे जानने चाहिए।
इसमें पहले एक उपवास एक पारणा और दो उपवास एक पारणा करना चाहिए। फिर दो में से एक उपवास का अंक घट जाने से एक उपवास एक