________________
160...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
विशेष से देववन्दन न कर पायें तो वह एक माला गिनकर उसकी पूर्ति कर ले, अन्यथा क्रिया अपूर्ण रह जायेगी ऐसा कहा गया हो अथवा सुना हो, इसलिए भी नवकारवाली गिनने का प्रचलन देखा जाता है। परन्तु यदि कोई टालमटोली या ऐसे ही देववन्दन न करे और फिर उसकी जगह एक माला गिने तो यह लापरवाही या क्रिया की अवहेलना होगी। तपोत्सव में बढ़ रहे आडम्बर एवं प्रदर्शन कितने प्रासंगिक?
तप आत्मशुद्धि और स्व-जागृति की प्रक्रिया है। इसके प्रति बहुमान के भाव तो सबके हृदय में होने ही चाहिए तथा उत्तम रूप से तप का बहुमान भी होना चाहिए। तप के उद्यापन में आडम्बर आदि धर्म की प्रभावना हेतु किये जाते हैं, परन्तु इसमें तप कर्ता के मन में स्वयं का अभिनंदन करवाने या लेने की भावना नहीं होनी चाहिए। वर्तमान में इसका रूप और भाव दोनों बदल गये हैं जिससे धर्म एवं तप की प्रभावना के स्थान पर हिलना हो रही है।
आज अट्ठाई से लेकर उससे ऊपर की तपस्याओं में लेने-देने की परम्परा बहुत अधिक बढ़ गयी है। सामान्य परिस्थिति वाले लोगों को तप करने से पहले सोचना पड़ता है, क्योंकि यदि किसी के पास पचास हजार, लाख रुपया खर्च करने के लिए है तो वह तप में साधर्मीवात्सल्य, अच्छी प्रभावना, शासन माता के गीत आदि कर सकता है और इसी के साथ पीहर पक्ष वालों के भी सामान्य में पन्द्रह-बीस हजार का खर्चा आ जाता है। इस हेतु आधुनिक युग में कई लोग तपस्या से कतराते हैं, आज तपस्या स्टेटस सिम्बल बन गयी है। इन सामाजिक रूढ़ियों के कारण लोग तप से विमुख होते जा रहे हैं।
आज कई सम्पन्न श्रावकों के द्वारा तप का आयोजन रखा जाता है जिसमें पूर्व से ही यह विज्ञापन शुरू कर देते हैं कि अमुक-अमुक प्रकार के कार्यक्रम
और अल्पाहार आदि की व्यवस्था रहेगी जिससे अधिक लोग जुट सकें। जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही इसके भी दो पक्ष हैं। इस प्रकार के प्रलोभनों से लोग अधिक आकर्षित होते हैं, परन्तु इससे व्यक्ति तप का सही स्वरूप विस्मृत करता जा रहा है और आराधना का मूल्यांकन भी प्राप्त सामग्री के आधार पर करने लग गया है, जो कि गलत है।
मेरे मतानुसार समाज में तप खर्च को लेकर एक सीमा निश्चित हो जानी