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140...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
(i) अट्ठाइस लब्धियों की प्राप्ति- कर्म आवरणों का क्षय होने पर स्वत: आत्मा से जो शक्ति प्रकट होती है उसे लब्धि या सिद्धि कहा जाता है। भौतिक शक्तियाँ मन्त्र-तन्त्र-यन्त्रादि से प्राप्त होती हैं, किन्तु अध्यात्म शक्तियाँ तपस्या, अभिग्रह जैसी कठोर साधना से अर्जित होती हैं। भौतिक शक्ति ‘जादू' कहलाती है, किन्तु आध्यात्मिक शक्ति ‘सिद्धि' कही जाती है।
___ आचार्य नेमिचन्द्र ने कहा है कि परिणामों की विशुद्धता,चारित्र धर्म की अतिशयता एवं महान तप के आचरण से लब्धियाँ प्राप्त होती है। लब्धियाँ विशुद्ध आत्मशक्ति हैं। उनके लिए देव शक्ति या मन्त्र शक्ति की आवश्यकता नहीं, वे तो तप से सहज उपलब्ध होती हैं।49 __ वैदिक-परम्परा के आचार्य पतञ्जलि ने लब्धियों को 'विभूतियाँ' कहा है50 और बौद्ध दर्शन ने इसे 'अभिज्ञा' कहा है।
लब्धि का अर्थ है लाभ अथवा प्राप्ति। तपस्या आदि के द्वारा जब जिस विषय के कर्मदलिक दूर होते हैं तब उस-उस सम्बन्धी आत्मशक्तियाँ प्रगट हो जाती हैं और वही लब्धि रूप कही जाती हैं। आचार्य अभयदेव ने इस सम्बन्ध में कहा है कि "आत्मनो ज्ञानादि गुणानां तत्कर्म क्षयादितोलाभः"- आत्मा के ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य आदि गुणों का तत्सम्बन्धित कर्मों के क्षय एवं क्षयोपशम से जो लाभ प्राप्त होता है, उसे लब्धि कहते हैं। आत्मा की शक्ति अनन्त है और वह अनन्त रूपों में प्रकट हो सकती है, किन्तु वह जितने रूपों में प्रकट होती है उतनी ही लब्धियाँ बन जाती हैं। मूलागमों में यह विवेचन सामान्य रूप से तथा उत्तरवर्ती ग्रन्थों में विस्तार से दृष्टिगत होता है।51
भगवतीसूत्र में दसविध लब्धियाँ बतायी गयी हैं
1. ज्ञानलब्धि, 2. दर्शनलब्धि, 3. चारित्रलब्धि, 4. चारित्राचारित्रलब्धि, 5. दानलब्धि, 6. लाभलब्धि, 7. भोगलब्धि, 8. उपभोगलब्धि, 9. वीर्यलब्धि और 10. इन्द्रियलब्धि/52
ये लब्धियाँ एकान्त तपोजन्य नहीं मानी गयी हैं, किन्तु इनके विकास में तप मुख्य कारण बनता है।
आचार्य नेमिचन्द्र ने अट्ठाईस लब्धियों का उल्लेख किया है। वे संक्षेप में इस प्रकार हैं:___1. आम!षधिलब्धि - आमर्ष का अर्थ है स्पर्श। जिस मुनि को यह लब्धि प्राप्त होती है उस विशिष्ट आत्मा के हाथ आदि का स्पर्श होने पर स्वयं