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तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...145 मानी गयी हैं, जिन्हें दस से चौदह पूर्व का ज्ञान होता है, वे पूर्वधर कहलाते हैं। जिस शक्ति के प्रभाव से पूर्वो का ज्ञान प्राप्त होता है, वह पूर्वधरलब्धि कहलाती है।
15. अहल्लब्धि - अरिहन्त तीर्थङ्कर को कहते हैं। जिस लब्धि के प्रभाव से अर्हत पद प्राप्त होता है, वह अर्हल्लब्धि कहलाती है।
16. चक्रवर्तीलब्धि - छह खण्ड के स्वामी को चक्रवर्ती कहते हैं। जिस लब्धि के प्रभाव से चक्रवर्ती पद की प्राप्ति होती है वह चक्रवर्तीलब्धि कहलाती है। ___ 17. बलदेवलब्धि - बलदेव वासुदेव के बड़े भाई हैं जो प्राय: सात्त्विक एवं धार्मिक प्रकृति के होते हैं। बलदेव का पद बड़ा महत्त्वपूर्ण है, वे इस पद को छोड़कर मुनि बनते हैं और कर्म क्षय कर मुक्ति प्राप्त करते हैं। जिस शक्ति के प्रभाव से बलदेव पद की प्राप्ति होती है उसे बलदेवलब्धि कहते हैं।
18. वासुदेवलब्धि - वासुदेव तीन खण्ड के अधिपति, सात रत्नों के स्वामी एवं युद्ध में शूरवीर होते हैं। नियमतः राजसी और तामसी प्रकृति के तथा भोगप्रिय एवं राज्यसत्ता के आकांक्षी होते हैं।
वासुदेव में बीस लाख अष्टापद का बल होता है। उसके बल का अनुमान करने के लिए आचार्यों ने एक उदाहरण दिया है - एक वासुदेव कुएँ के तट पर बैठा हो, उसे जंजीरों से बांधकर उसकी समस्त सेना के हाथी, घोड़े, रथ और पदाति, पसीना-पसीना हो जाये यों चतुरंगिणी सेना के साथ सोलह हजार राजा उस जंजीर को दम लगाकर खींचते रहे। फिर भी वे वासुदेव को खींच नहीं सकते, किन्तु वासुदेव उस जंजीर को बायें हाथ में पकड़ कर बड़ी आसानी से अपनी ओर खींच सकते हैं।60
वासुदेव में जितना बल होता है, उससे दुगुना बल चक्रवर्ती में होता है और उससे अनन्त गुना बल तीर्थङ्कर परमात्मा में होता है। जिस शक्ति के उत्पन्न होने से वासुदेव पद प्राप्त होता है, वह वासुदेवलब्धि है।61
19. क्षीरमधुसर्पिरावलब्धि - जिस लब्धि के प्रभाव से वक्ता के वचन सुनने वालों को दूध, मधु एवं घृत के समान अत्यन्त प्रिय एवं सुखकारी लगते हैं वह क्षीरमधुसर्पिराश्रवलब्धि कहलाती है। यानी जिनके वचन दूध, मधु व घृत के सदृश शरीर और मन को सुख प्रदाता हों वह इस लब्धि के धारक होते हैं।