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तप साधना की उपादेयता एवं उसका महत्त्व...143
1. जंघाचारण मुनि को जंघा के बल पर उड़ने की शक्ति प्राप्त होती है। इस शक्ति के प्रभाव से पद्मासन लगाकर जंघा पर हाथ लगाते ही वह आकाश में उड़ जाता है।
यह लब्धि चारित्र एवं तप के विशेष प्रभाव से प्राप्त होती है। भगवतीसूत्र में इसकी साधना विधि का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि निरन्तर बेले-बेले तप करने वाले को विद्याचारण एवं निरन्तर तेले-तेले तप करने वाले को जंघाचारण लब्धि की प्राप्ति होती है।57
जंघाचारण लब्धिवाला आकाश में उड़ान भरने से पूर्व किसका आश्रय लेता है, एक ही उड़ान में कितना दूर पहुंच सकता है, ऊर्ध्वलोक में उड़ान करे तो वह सीधा कहाँ पहँचता है, वापस लौटते हए कितना समय लगता है, मध्य में कहाँ विश्राम लेता है, इत्यादि वर्णन भी आगमों में देखा जाता है।
2. विद्याचारण लब्धि तप और विद्या के विशेष अभ्यास द्वारा प्राप्त होती है। जंघाचारण में चारित्र की प्रधानता रहती है और इसमें ज्ञान की। जंघाचारण से विद्याचारण की शक्ति कम होती है, क्योंकि इसका तप क्रम अपेक्षाकृत सरल होता है। ग्रन्थों में बताया गया है कि जंघाचारणलब्धि वाला तीन बार आँख की पलक झपकने जितने समय में एक लाख योजन परिमाण जम्बूद्वीप के इक्कीस चक्कर लगा सकता है, किन्तु विद्याचारणलब्धि वाला इतने समय में सिर्फ तीन चक्कर ही लगा पाता है। जंघाचारण में गति की तीव्रता अधिक होती है। आज के जेट विमान, फ्रांस के मिराज विमान, चन्द्रयान आदि अभी भी जंघाचारण
और विद्याचारणलब्धि की शक्ति से बहुत पीछे हैं। फिर इनमें यंत्रबल है जबकि उनमें आत्मबल का ही चमत्कार होता है।
दिगम्बर आचार्य यतिवृषभाचार्य ने चारणलब्धि के अनेक अन्तर्भेदों का भी वर्णन किया है। जैसे जलचारण- जल में भूमि की तरह चलना, पुष्पचारणफूल का सहारा लेकर चलना, धूमचारण- आकाश में उड़ते धुएँ का आलम्बन लेकर उड़ना, मेघचारण- बादलों को पकड़कर चलना, ज्योतिश्चारण- सूर्य एवं चन्द्र की किरणों का आलम्बन लेकर गमन करना आदि।58
यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि विद्याचारणलब्धि में और विद्याधरों की आकाशगामिनी शक्ति में अन्तर है। विद्याधरों को भी विद्याभ्यास करना पड़ता है, किन्तु वह जन्मगत एवं जातिगत संस्कार रूप में भी प्राप्त होती है। कुछ योगी