________________
तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...39 2. क्षेत्र अभिग्रह - मुनि भिक्षाटन करने से पूर्व यह संकल्प करे कि आज अमुक क्षेत्र में आहार मिलेगा तो लूंगा। जैसे- दाता का एक पैर देहली के भीतर और एक पैर देहली के बाहर होगा तो भिक्षा लूंगा, यह क्षेत्र अभिग्रह कहलाता है। ___3. काल अभिग्रह - मुनि भिक्षागमन से पहले यह निर्णय करें कि आज दिन के अमुक प्रहर में, अमुक घण्टा में आहार मिलेगा तो लूंगा अन्यथा नहीं। जैसे- भगवान महावीर ने तीसरे प्रहर का अभिग्रह किया था, यह काल अभिग्रह कहा जाता है।
4. भाव अभिग्रह – मुनि भिक्षा प्राप्त करने से पूर्व यह संकल्प करे कि अमुक जाति, अमुक लिंग, अमुक वेश, अमुक भाव के साथ अमुक व्यक्ति भिक्षा देगा तो ही लूंगा। जैसे दाता हंसता हुआ, रोता हुआ या बद्ध अवस्था में देगा तो ही लूंगा अन्यथा नहीं, यह भाव अभिग्रह कहलाता है।
औपपातिकसूत्र में भाव अभिग्रह 26 प्रकार का बतलाया गया है जो संक्षेप में निम्नोक्त है49___1. उत्क्षिप्त चर्या - गृहस्थ द्वारा अपने प्रयोजन हेतु भोजन पकाने के बर्तन से निकाला गया आहार लेने की प्रतिज्ञा (अभिग्रह) करना।
2. निक्षिप्त चर्या - भोजन पकाने के बर्तन से नहीं निकाला हुआ आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना। '
3. उक्षिप्त-निक्षिप्त चर्या - भोजन पकाने के बर्तन से निकाल कर उसी जगह या दूसरी जगह रखा हुआ आहार अथवा अपने प्रयोजन से निकाला हुआ या नहीं निकाला हुआ- दोनों प्रकार का आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना।
4. निक्षिप्त-उक्षिप्त चर्या - भोजन पकाने के बर्तन में से निकालकर अन्यत्र रखा हुआ, फिर उसी में से उठाया हुआ आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना।
5. वर्तिष्यमाण चर्या - खाने हेतु परोसे हुए भोजन में से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लिए रहना।
6. संहृयमाण चर्या - जो भोजन ठण्डा करने के लिए पात्र आदि में