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ताओ उपनिषद भाग ६
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लाओ, बीमारी की पीछे फिक्र करेंगे। क्योंकि आधी बीमारी तो नींद में ही ठीक हो जाएगी। तुम जब जागे रहते हो तो तुम बाधा डालते हो। और तुम्हारी ऊर्जा बाहर की तरफ बहती रहती है। जब तुम सो जाते हो, सारी ऊर्जा भीतर वर्तुलाकार घूमने लगती है। तो निर्माण होता है।
बूढ़ा आदमी तो मर रहा है। निर्माण तो कब का बंद हो चुका। अब तो चीजें टूट रही हैं। अब तो सेल नष्ट हो रहे हैं। अब तो जो भी मिट जाता है वह फिर नहीं बनता। तो उसकी नींद कम हो गई है। स्वाभाविक है। अब उसको नींद की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए, कि वह सोचे कि हम जवान जब थे तो आठ घंटे सोते थे। तो तब तुम जवान थे, तुम नहीं सोते थे आठ घंटे, जवानी आठ घंटे सोती थी । तुम बच्चे थे, बीस घंटे सोते थे। तुम नहीं सोते थे, बचपना बीस घंटे सोता था ।
और फिर हर व्यक्ति के जीवन में रोज बदलाहट होती है। तो व्यक्ति को सजग होकर संतुलन को सम्हालना चाहिए। जड़ नियम जो बना लेता है वह हमेशा असंतुलित हो जाएगा। क्योंकि तुम रोज बदल रहे हो। बचपन में एक नियम बना लिया; जवान हो गए, अब क्या करोगे? जवानी में एक नियम बना लिया; अब बूढ़े हो गए, अब क्या करोगे? नहीं, आदमी को सजग रह कर रोज-रोज संतुलन खोजना पड़ता है।
जैसे तुमने कभी किसी नट को देखा हो रस्सी पर चलते । वह ऐसा थोड़े ही कि एक दफा सम्हाल लिया संतुलन और चल पड़े; बस एक दफा पहले कदम पर सम्हाल लिया, चल पड़े। हर कदम पर सम्हालना होता है। क्योंकि हर कदम नया कदम है; हर यात्रा नयी यात्रा है। हर पल नया है, तुम्हारा पुराने पल का जो तुमने तय किया था वह नये पल में काम न आएगा। तो नट एक लकड़ी हाथ में लिए रहता है। अगर बाएं जरा ही ज्यादा झुकता है तो तत्क्षण दाएं लकड़ी को झुका देता है ताकि संतुलन हो जाए। दाएं जरा ज्यादा झुकने लगता है तो तत्क्षण बाएं झुक जाता है ताकि संतुलन हो जाए। बाएं और दाएं के बीच में प्रतिपल गत्यात्मक रूप से संतुलन को साधता है।
अतियों के बीच तुम्हें गत्यात्मक रूप से संतुलन साधना होगा। और जीवन एक नट की ही यात्रा है। वहां दोनों तरफ खड्डे और खाई हैं। इधर गिरो तो खाई, उधर गिरो तो खड्ड । ठीक मध्य में खड्ग की धार की तरह बारीक है रास्ता ।
इसलिए लाओत्से कहता है, अति कभी नहीं; नेवर टू मच । किसी भी चीज का नहीं ।
दूसरा कोई तुम्हारे लिए सिद्धांत तय नहीं कर सकता। अब विनोबा उठते हैं सुबह तीन बजे तो उनके आश्रम में सभी को सुबह तीन बजे उठना । अब यह पागलपन है। विनोबा बूढ़े हो गए। और उनको जमता रहा है तीन बजे उठना, क्योंकि वे आठ बजे सोने भी चले जाते हैं। उनके शरीर को रास आता है; ठीक है। वह उनके लिए नियम है। इसलिए उनके आश्रम में तुम हर आदमी को दिन भर जम्हाई लेते, आंखें बंद करे, परेशान पाओगे । ब्रह्ममुहूर्त में क्या उठे, पूरा दिन निद्रा का आक्रमण होता है।
एक आदमी मेरे पास आया। उसने स्वामी शिवानंद की किताबें पढ़ लीं। उसमें उन्होंने लिखा है कि चार घंटे से ज्यादा सोना तामस का लक्षण है । अब यह आदमी अभी मुश्किल से बत्तीस साल का था, जवान था। वह चार घंटे सोने लगा। जब तामस है तो तामस से तो छुटकारा पाना ही है। तो जब चार घंटे सोने लगा तो दिन भर तामस आने लगा। पहले सात घंटे सोता था तो सात घंटे तामस था। अब चौबीस घंटे तामस हो गया। जब उसने पाया कि यह तो तामस बढ़ता ही जा रहा है तो शिवानंद की किताबें और उसने गौर से देखीं कि गुरु इस संबंध में क्या कहते हैं ? तो उन्होंने बताया कि अगर तामस न मिटता हो तो उसका मतलब कि तुम भोजन ज्यादा कर रहे हो। तो भोजन एक दफा कर दिया। नींद और कमजोरी- इन दो पंखों से वह परमात्मा की यात्रा करने लगे। चौबीस घंटे भूखे और भोजन का चिंतन, और चौबीस घंटे प्यासे नींद के और जम्हाइयां ।