Book Title: Sutra Vyakhayan Vidhi Shatakam
Author(s): Dharmsagar Gani, Labhsagar
Publisher: Mithabhai Kalyanchand Pedhi

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ व्याख्यान विधि त्रिप्रकारा सुप्रसिद्धा जिनसमये-जिनशासने अनुयोगद्वारोक्तत्वेन वादिप्रतिवादिनो नाममात्रेण सम्मता। सा चैवं-'णिज्जुत्ति अणुगमे तिविहे पं० तं०-णिक्खेवणिज्जुत्ति अणगमे १, उग्धायणिज्जुत्ति अणुगमे २, सुत्तफासिअणिज्जुत्तिअणुगमे ३, त्तिअनुयोगद्वारे इति गाथार्थः ॥ १० ॥ ___अथ तिसृष्वपि नियुक्तिषु प्रकृते विवक्षितप्रयोजनवशेन सर्वसूत्रसाधारणां नियुक्तिमाहतासु उवुग्धायभिहा, णिज्जुत्ती सव्वसुत्तसामण्णा । उद्देसाइ छब्बीस दारगाहाहि ताउ इमा॥ ११ ॥ ___ व्याख्या-तासु-तिसृप्वपि नियुक्तिषु, उपोद्घाताभिधाउपोद्घातनाम्नी नियुक्तिः सर्वसूत्रसामान्या-सर्वसूत्रसाधारणा मन्तव्या। तेन श्रीभद्रबाहुस्वामिकृता या दश नियुक्तयो भणिताः, ताश्च विवक्षया विशेषरूपाः निक्षेपनियुक्तिसूत्रस्पर्शिकनियुक्तयोऽवसातव्याः । तासां च प्रतिसूत्रं भिन्नत्वात् । या चोपोद्घातनियुक्तिः सा चोद्देशादिषड्विशतिद्वाराभिधायिकाभ्यां गाथाभ्यां भवति । ते च द्वारगाथे इमे-अनन्तरं वक्ष्यमाणे इति गाथार्थः ॥ ११ ।। अथ द्वारगाथाद्वयमाह - उद्दे से १ णिह से २, ___ अणिग्गमे ३ खित्त ४ काल ५ पुरिसे ६ अ । कारण ७ पच्चय ८ लक्खण ६, णए १० समोआरणा ११ णुमए १२ ॥१२॥ For Private And Personal Use Only

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