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| पार्श्वनाथ विद्यापीठ समाचार |
१. लाला हरजसराय जैन स्मृति व्याख्यानमाला के अन्तर्गत डॉ० अरुण प्रताप सिंह का व्याख्यान इस व्याख्यानमाला के द्वितीय पुष्प के रूप में डॉ० अरुण प्रताप सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, श्री बजरंग स्नातकोत्तर, महाविद्यालय, सिकन्दरपुर, बलिया का व्याख्यान “मौर्य काल में जैन धर्म' विषय पर आयोजित किया गया। व्याख्यानमाला सत्र की अध्यक्षता मानव संस्कृति शोध संस्थान के निदेशक डॉ० झिनकू यादव ने की। अपने व्याख्यान में डॉ० सिंह ने मौर्य काल की विभिन्न विशेषताओं का निरूपण करते हुए जैन धर्म एवं मौर्य साम्राज्य के परस्पर सम्बन्धों का दिग्दर्शन कराने का प्रयत्न किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जैन धर्म और चन्द्रगुप्त मौर्य के सम्बन्ध के सन्दर्भ में जैन धर्म में दो मत प्राप्त होते हैं। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त मौर्य का जैनधर्म से कोई सम्बन्ध नहीं जबकि दिगम्बर परम्परा की मान्यता है कि उसका पूरा जीवन जैन धर्म से प्रभावित था। इस संदर्भ में उन्होंने जैन ग्रन्थ तिलोयपण्णत्ति का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने बताया कि कुछ स्थलों पर चन्द्रगुप्त का अपर नाम विशाखाचार्य भी प्राप्त होता है। आगे उन्होंने अशोक, कुणाल एवं संप्रति के जैनों से सम्बन्ध, जैन धर्म का उनके ऊपर प्रभाव तथा उसके प्रचार-प्रसार के लिए किये गये प्रयासों पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर जो विद्वज्जन उपस्थित थे उनमें मुख्य थे- प्रो० कमलेश कुमार जैन, प्रो० डी०पी० शर्मा, डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय, डॉ० रजनीकान्त त्रिपाठी, डॉ० श्रीनेत्र पाण्डेय, डॉ० ओम प्रकाश सिंह, डॉ० राहुल कुमार सिंह तथा राजेश चौबे इत्यादि। इनके अतिरिक्त शोध छात्र तथा छात्राएँ अधिक संख्या में उपस्थित थे। २. 'श्रमण परम्परा के स्रोत एवं मूलभूत सिद्धान्त' विषयक १५ दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न पार्श्वनाथ विद्यापीठ द्वारा श्रमण परम्परा के स्रोत एवं मूलभूत सिद्धान्त' विषयक एक १५ दिवसीय कार्यशाला का दिनांक २६ नवम्बर से १० दिसम्बर २०१५ तक आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्घाटन २६ नवम्बर २०१५ दिन बृहस्पतिवार को पार्श्वनाथ विद्यापीठ के सभागार में हुआ। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति प्रो० यदुनाथ