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हिन्दी अनुवाद :
अपने सार्थ से छूटे हुए अलग पड़े दोनों महात्मा भील पल्ली में पानी के लिए प्रवेश किए।
गाहा :
दिट्ठा य परियडंता कविलेणं कहवि पच्चभिन्नाया । कुद्धो य दढं एसो दट्ठूण मुणिं समरकेउं ।। ३८ ।। संस्कृत छाया :
दुष्टौ च पर्यटन्तौ कपिलेन कथमपि प्रत्यभिज्ञातौ । क्रुद्धश्च दृढमेष दृष्ट्वा मुनिं समरकेतुम् ।। ३८ ।।
गुजराती अनुवाद :
कपिले ते घंनेने फरता ओळख्या अने समरकेतु मुनिने जोई ते
क्रोधित थया ।
हिन्दी अनुवाद :
वहाँ कपिल ने दोनों को पहचान लिया और समरकेतु मुनि को देखकर बहुत क्रोधित हुआ।
गाहा :
चिंतेइ ताहे कविलो इमेण वाएवि निज्जिओ अहयं । निव्विसओ आणत्तो तइया य इमेण पावेण ।। ३९ ।।
संस्कृत छाया :
खूबज
चिन्तयति तदा कपिलोऽनेन वादेऽपि निर्जितोऽहम् । निर्विषय आज्ञप्तस्तदा चानेन पापेन ।। ३९ ।।
गुजराती अनुवाद :
ते वखते कपिले विचार्य के तेना वड़े हुं वादमां जीतायो अने ते पापीओ मने देश निकालनी आज्ञा करी ।
हिन्दी अनुवाद :
उस समय कपिल ने विचार किया कि इनसे मैं वाद में जीता गया और उस पापी ने मुझे देश निकाला की आज्ञा दी।