Book Title: Sramana 2015 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 122
________________ गाहा: दिय-लोय-समुप्पन्नो पवरो एसो मणी महाभाग! । निस्सेस-दोस-समणो विसेसओ विस-समूहस्स ।। १४३।। संस्कृत छाया : दिव्यलोक-समुत्पन्नः प्रवर एष मणिर्महाभाग। निःशेष-दोष-शमनो विशेषतो विष-समूहस्य ।।१४३।। गुजराती अनुवाद : दिव्य लोक मां उत्पन्न थयेलो छ। हे महाभाग्यसाली आ श्रेष्ठमणि बधा दोषोने शांत करनारो छे. आमा विशेषथी झेर ने शांत करनारो छ। हिन्दी अनुवाद : दिव्य लोक में उत्पन्न हुई है। हे महाभाग्यशाली! यह श्रेष्ठ मणि समस्त दोषों को शान्त करने वाली है। यह विशेष रूप से जहर को शान्त करने वाली गाहा : ता धणदेव! महायस! गेण्हसु एयं तुमं मणिं दिव्यं । सयल-गुणेग-निहाणं मह अणुरोहेण, किं बहुणा ।।१४४।। संस्कृत छाया : तस्मात् धनदेव! महायश! गृहाण एतं त्वं मणिं दिव्यम् । सकल-गुणक-निधानं ममाऽनुरोधेन, किंबहुना? ।।१४४।। गुजराती अनुवाद : तेथी हे धनदेव! हे महायशस्वी तुं आ दिव्यमणी जे बधा गुणों नु निधान छे तेने मारा अनुरोध थी ग्रहण कर। हिन्दी अनुवाद : इसलिए हे धनदेव! हे महायशस्वी! तुम यह मणि जो समस्त गुणों की खान है, मेरे अनुरोध पर इसे ग्रहण करो। गाहा : एयं निसम्म वयणं कुसलो भणिईस भणइ धणदेवो । भो राय-सुय! जमेयं तुमए सह सणं मज्जा ।।१४५।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170