Book Title: Sramana 2015 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 167
________________ एसोवि परिसमप्पइ सिरिकता-तणय-पसवणो नाम । सुरसुंदरि-नामाए कहाए नवमो परिच्छेओ ।।२५०।। संस्कृत छाया : साधु धनेश्वर-विरचित-सुबोध-गाथा-समूह-रम्यायाः । रागानि (दोस) द्वेष-विषधर-प्रशमन-जलमन्त्रभूतायाः ।।२४९।। एषोऽपि परिसमाप्यते श्रीकान्तातनय-प्रसवनो नाम । सुरसुन्दरी-नाम्याः कथायाः नवमः परिच्छेदः ।। २५०।। गुजराती अनुवाद : साधु धनेश्वर द्वारा रचित सारा बोधयुक्त गाथाना समूह थी मनोहर रागरूपी अलि अने द्वेषरूप सांप ने शांत करवामां पाणी अने मंत्र समान स्वो आ श्रीकान्ताने पुत्रना प्रसव नामनो सुरसुंदरीनाम नो कथानो नवमो परिच्छेद पूर्ण थयो। हिन्दी अनुवाद : साधु धनेश्वर द्वारा रचित सुन्दर बोधयुक्त गाथाओं के समूह से मनोहर रागरूपी अग्नि और द्वेषरूपी सर्प को शान्त करने योग्य पानी और मन्त्र समान यह श्रीकान्ता के पुत्र का प्रसव नामक सुरसुन्दरी कथा का नौवां परिच्छेद पूर्ण हुआ। *****

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