Book Title: Sramana 2015 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 153
________________ संस्कृत छाया : तथा एतस्य विरक्ताः सामन्त-महन्तादिकाः सर्वे । राज्यश्रिया अयोग्यः, त्वमेव च कुमार योग्योऽसि ।।२१६ ।। गुजराती अनुवाद :- . तथा सामन्त महंत बधा अनाथी कंटाळी गया छे. तेथी हे कुमार! तमे राज्यलक्ष्मी ने योग्य छो। हिन्दी अनुवाद :___तथा सामन्त, महंत सभी उससे परेशान हो गए हैं। इसलिए हे कुमार! तुम राज्य लक्ष्मी के योग्य हो। गाहा : तुज्झ पुण वहट्ठाए कणगवईए, पभूय-विक्खेवो । पठ्ठविओ ता तुमए रक्खेयव्वं निय-सरीरं ।। २१७।। संस्कृत छाया : तव पुनर्वधार्थ कनकवत्या प्रभूत-विक्षेपः । प्रस्थापितस्तावत्त्वया रक्षितव्यं निज-शरीरम् ।।२१७।। गुजराती अनुवाद : तमने मारवा माटे कनकवतीर मोटु सैन्य मोकल्युं छे तेथी तमारे तमारो जीव बचाववो। हिन्दी अनुवाद : तुम्हें मारने के लिए कनकवती ने बड़ी सेना भेजी है। इसलिए तुम अपनी जान बचाओ। गाहा : एवं च जाव साहइ सो पुरिसो भह! पल्लि-नाहस्स । ताव य सो विक्खेवो पभूय-रह-तुरय-पाइक्को ।। २१८।। सहसच्चिय संपत्तो समंतओ वेढिया इमा पल्ली। अह भिल्ल-निवह-सहिओ नीहरिओ सुप्पइट्ठोवि ।। २१९।। संस्कृत छाया : एवञ्च यावत् कथयति स पुरुषो भद्र! पल्लिनाथाय । तावच्च स विक्षेपः प्रभूत-रथ-तुरङ्ग-पदातिः ।। २१८।।

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