Book Title: Sramana 2015 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 163
________________ हिन्दी अनुवाद : तब श्रीकान्ता ने कहा ठीक है ऐसा ही करूँगी। ऐसा कहकर रानी की आज्ञा लेकर वह अपने घर आ गयी। गाहा : एवं सिरिकताए ससुर-कुले तत्थ अच्छमाणीए । कमलावई-देवीए समयं गुरु-पीइ-जुत्ताए ।।२४०।। घणदेवेणं समयं विसय-सुहं सम्ममणुहवंतीए । बहुयाओ अइक्कंता वासाणं कोडि-कोडीओ ।। २४१।। संस्कृत छाया : एवं श्रीकान्तायाः श्वसुरकुले तत्राss समानयाः । कमलावतीदेव्या समकं गुरुप्रीतियुक्तया ।।२४०।। धनदेवेन समकं विषयसुखं सम्यगनुभवन्त्याः । बहवोऽतिक्रान्ता वर्षाणां कोटीकोटयः ।।२४१३। युग्मम्।। गुजराती अनुवाद :___आ प्रमाणे श्रीकान्ता स पोताना सासरिया मां रहेता छतां कमलावती राणी साथे पण गाढ प्रीतिनी साथे साथे धनदेव नी साथे विषय सुख ने भोगवतां घणा कोड़ा कोडी वर्ष पसार कर्या। हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार श्रीकान्ता अपने ससुराल में रहते हुए कमलावती रानी के साथ भी प्रगाढ़ प्रेम करती तथा धमदेव के साथ विषय सुख भोगते कितने कोड़ाकोड़ी वर्ष व्यतीत किए। गाहा : अह अन्नया कयाइवि रिउण्हाया भत्तुणा समं सुत्ता.। . रयणी-चरिम-जामे सुमिणं पासित्तु पडिबुद्धा ।। २४२।। संस्कृत छाया : अथान्यदा कदाचिदपि ऋतुस्नाता भर्ना समं सुप्ता। रजनी-चरम-यामे स्वप्नं दृष्ट्वा प्रतिबुद्धा ।। २४२।।

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