Book Title: Sramana 2015 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 152
________________ गाहा : सुग्गीवस्सिह रन्नो अतिसुरय-पसंग-दोसओ जाओ। खय-वाही तेण इमो चेइ खण-जीवियव्वोत्ति ।। २१४।। संस्कृत छाया : सुग्रीवस्येह राज्ञोऽतिसुरत-प्रसङ्ग-दोषतो-जातः । क्षय-व्याधिस्तेनाऽयं तिष्ठति क्षण-जीवितव्य इति ।। २१४।। गुजराती अनुवाद : सुग्रीव राजा अत्यंत कामवासना थी क्षय रोगथी पीडायेला, अंतिम अवस्था भोगवी रहया छे. हिन्दी अनुवाद : __ सुग्रीव राजा अति कामवासना युक्त होने से क्षय रोग से पीड़ित अपनी अन्तिम अवस्था भोग रहा है। गाहा : एसोवि सुरह-कुमरो संतावइ सयल-पयइ-वग्गं तु । दुस्सीलो उल्लंठो असन्म-भासी अकज्ज-रओ ।। २१५।। संस्कृत छाया : एषोऽपि सुरथकुमारः सन्तापयति सकल-प्रकृति-वर्ग तु । दुःशील उल्लण्ठोऽसभ्यभाष्यकार्यरतः ।।२१५।। गुजराती अनुवाद : अने सुरथ कुमार बधी प्रजा ने संतापे छे वळी ते दुःशील, उल्लंठ, असध्यवाणी अने अकार्य करनारो छे. हिन्दी अनुवाद : और सुरथ कुमार सम्पूर्ण प्रजा को कष्ट देता है। वह अत्यन्त चरित्रहीन, उदंड, असभ्य वचन वाला और न करने वाला कार्य करने वाला है। गाहा : तह एयस्स विरत्ता सामंत-महंतमाइया सव्वे। रज्ज-सिरीए अजोगो, तं चेव य कुमर! जोगो सि ।।२१६।।

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