Book Title: Sramana 2015 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 139
________________ उज्जीविस्सइ एयं होही एयाए सो भत्ता ।। १८५ ।। संस्कृत छाया : श्रीकान्ता मम भगिनी कन्या सर्पेणाऽद्य दष्टेति । न तु जीवयति कोऽपि खलु तेन वयमाकुला मित्र! ।। १८४ ।। अन्यच्च । नैमित्तिकेन पूर्वमादिष्टमासीत् सर्पदष्टां यः । उज्जीविष्यति एतां भविष्यति एतस्याः स भर्ता । । १८५ । । गुजराती अनुवाद : श्रीकान्ता मारी बेन सांप द्वार दंशाई छे. कोई तेने बचावी नथी शक्यु माटे हे मित्र अमे व्याकुण छीओ. वणी निमित्तियाओ पहेलां भाख्यु हतुं के श्रीकान्ता ने ज्यारे साँप दंश मारसे ते वखते अने जीवाड़नारो ऐनो पति धनशे । हिन्दी अनुवाद : श्रीकान्ता हमारी बहन को सांप ने डंस लिया है और कोई उसे बचा नहीं पा रहा इसलिए हे मित्र हम लोग परेशान हैं। ज्योतिषीद्र ने पहले बताया था कि श्रीकान्ता को जब साँप डंसेगा उस वक्त इसे जीवित करने वाला इसका पति बनेगा। गाहा : एयं च तस्स वयणं अलिय-प्पायं तु संपइ जायं । जं सा अहिणा डक्का न य कोवि हु तं समुद्रुवइ ।। १८६ । । संस्कृत छाया : एतच्च तस्य वचनमलीकप्रायं तु सम्प्रति जातम् । यत् साहिना दष्टा न च कोऽपि खलु तां समुत्थापयति ।। १८६ ॥ गुजराती अनुवाद : अहीं एनुं वचन दु पड्युं केमके सांपे दशी लोधी छे पण कोई बचावी शक्युं नथी । हिन्दी अनुवाद : लगता है उसका वचन झूठा है क्योंकि साँप ने डंस लिया है किन्तु कोई उसे बचाने में सफल नहीं हो रहा है।

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