Book Title: Sramana 2015 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 149
________________ गाहा : तं द8 धणदेवो एवं वज्जरइ हा! किमेयंति । अइविसमावि हु पल्ली केण इमा हंदि! दडत्ति ।। २०७।। संस्कृत छाया : तां दृष्ट्वा धनदेव एवं कथयति हा किमेतदिति? । अतिविषमाऽपि खलु पल्ली केनेयं हन्दि दग्धेति ।।२०७।। गुजराती अनुवाद : ते जोईने धनदेव बोल्यो अररर... आ घधु शुं थयु? आटली दुर्गम अवी आ पल्ली ने कोणे सळगादी। हिन्दी अनुवाद : यह देखकर धनदेव ने कहा, अरे यह सब क्या हो गया। इतनी विषम ऐसी इस पल्ली को किसने जलाकर बर्बाद किया? गाहा : एत्थंतरम्मि केणवि करंक-मज्झ-ठिएण वज्जरियं । धणदेव! एहि एत्तो अहयं सो देवसम्मोत्ति ।। २०८।। संस्कृत छाया : अत्रान्तरे केनाऽपि करक-मध्यस्थितेन कथितम् । धनदेव! एहीतोऽहकं स देवशर्मेति ।।२०८।। गुजराती अनुवाद : अटली वार मां काटमाळनां मध्यमां रहेला कोइस कहूं, हे धनदेव तुं आ घाजु आव हुं देवशमा छु। हिन्दी अनुवाद : इतने में अस्थिपंजर के बीच में रहा हुआ किसी ने कहा, हे धनदेव! तुम इस तरफ आवो मैं देवशर्मा हूँ। गाहा : पलिच्छिन्न-चलण-जुयलो गुरु-पहरण-घाय-जज्जरिय-देहो। गाढं तिसाभिभूओ अज्जवि चिट्ठामि जीवंतो ।।२०९।।

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