Book Title: Sramana 2015 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 144
________________ गाहा : पडिभंडं पिहु गहियं संवूढा सयल-सत्थिया ताहे । धणदेवो आपुच्छइ गमणत्थं ससुर-वग्गं तं ।।१९६।। संस्कृत छाया : प्रतिभाण्डं पृथु गृहीतं संव्यूढाः सकल-सार्थिकास्तदा । धनदेव आपृच्छति गमनाथ श्वसुरवर्ग तम् ।। १९६।। गुजराती अनुवाद : बधा सार्थना लोको पण जवा माटे सज्ज थई गया त्यारे धनदेव जवा माटे ससरा ने पूछवा गयो। हिन्दी अनुवाद : उसके सार्थ के सभी लोगे जाने के लिए तैयार हो गये तब धनदेव जाने के लिए अपने ससुर से. आज्ञा लेने गया। गाहा : अह भूरि-दविण-जुत्ता दासी-दासाइ-परियण-समग्गा । सिरिकंता निय-पिउणा पट्टविया भत्तुणा समयं ।।१९७।। ARTता दासी संस्कृत छाया : अथ भूरि-द्रव्ययुक्ता दासी-दासादि-परिजन-समग्रमा । श्रीकान्ता निज-पिता प्रस्थापिता भर्ना समम् ।।१९७।। गुजराती अनुवाद : खूब द्रव्य दास-दासी अने स्वजनो सहित श्रीकान्ता पोताना पिता द्वारा पति साथे मोकलावाइ। हिन्दी अनुवाद : प्रचुर द्रव्य, दास, दासी और स्वजनों सहित श्रीकान्ता अपने पिता द्वारा पति के साथ भिजवाई। गाहा : पुव्वुट्ठि-कमेणं धणदेवो गरुय-सत्थ-परियरिओ। चलिओ निय-नयरम्मि कुसग्गनयराउ सुह-दिवसे ।।१९८।।

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