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संस्कृत छाया :
सा कथं तिष्ठति सम्प्रति जीवति वा न वेति मह्यं कथय ? | अवधिज्ञानेन त्वं जानासि प्रत्यक्षमिव सर्वम् ।। ७७ ।।
गुजराती अनुवाद :
हमणा तेणी क्यां छे, अने जीवे छे के नहिं ते तुं मने कहे केमके तुं तो अवधि ज्ञान थी बधु प्रत्यक्ष जुए छे ।
हिन्दी अनुवाद :
इस समय वह कहाँ है, और जीवित है कि नहीं, तुम मुझे बताओ क्योंकि तुम तो अवधि ज्ञान से सभी वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखते हो ।
गाहा :
ईसिं हसिऊण तओ देवो वज्जरइ भद्द! निसुणेसु । सा तुह भज्जा नीया गंगावत्तम्मि रुयमाणी ।।७८ ।। संस्कृत छाया :
ईषद्धसित्वा ततो देवः कथयति भद्र! निःशृणु । सा तव भार्या नीता गङ्गावर्त्ते रूदन्ती ।।७८ ।।
गुजराती अनुवाद :
थोड हसीने ते देवे कह्युं हे भद्र! रोती एवी तारी पत्नी गंगावर्त नगरमां लई जवाई।
हिन्दी अनुवाद :
थोड़ा हँसकर उस देव ने कहा हे भद्र! रोती हुई तुम्हारी पत्नी गंगावर्त नगर में ले जाई गयी है।
गाहा :
नहवाहणेण तत्तो छूढा अंतेउरम्मि निययम्मि । गुरु-सोय-पीडियाए किल एवं चिंतयंतीए । । ७९ ।।
संस्कृत छाया :
नभोवाहनेन ततः क्षिप्तान्तःपुरे निजके ।
गुरुशोकपीडितया किलैवंचिन्तयन्त्या ।। ७९ ।।