________________
पर-विज्जाणं छेयं मंताण ओसहीण अहलत्तं । काहिसि इच्छाए तुमं खयराणं वयण-मत्तेणं ।।१३५।। अइदप्पियावि खयरा आणा-निहेस-कारिणो सव्वे ।
होहिंति विणय-पणया मज्झ पभावाओ तुह भद्द! ।।१३६ ।। संस्कृत छाया :
मम प्रभावात्तव सर्वाश्चैव खचर-विद्याः । भविष्यन्ति पठित-सिद्धा अधिका अन्य खचरेभ्यः ।।१३४।। पर-विद्यानां छेदं मन्त्राणामौषधीनामफलत्वम् । करिष्यसीच्छया त्वं खचराणां वचन-मात्रेण ।।१३५।। अतिदर्पिता अपि खचरा आज्ञा-निर्देश-कारिणः सर्वे।
भविष्यन्ति विनय-प्रणता मम प्रभावात् तव भद्र! ।।१३६।। गुजराती अनुवाद :
मारा प्रभावथी से विद्याधरोनी बधी विद्याओं वणवा मात्र थी सिद्ध थशे. ओ तुं बीजा विद्याधरोथी अधिक थईश।
बीजानी विद्याओनो छेद की शकीश अने तेओना मन्चने औषधिने पण इच्छा मात्रथी निष्फळ करी शकीश। अत्यंत अहंकारी स्वा पण बधा विद्याधरो मारा प्रयाव थी तारी आज्ञाना आदेशने विनय पूर्वक करवावाळा थशे तने बधी विधा सिद्ध थशे। हिन्दी अनुवाद :
मेरे प्रभाव से और विद्याधरों की सभी विद्या पढ़ने मात्र से तूं दूसरे विद्याधरों से अधिक सिद्ध होगा। दूसरे की विद्याओं का छेद कर सके, और उनके मन्त्र और औषधि भी केवल चाहने मात्र से निष्फल कर सके, ऐसे अत्यन्त अहंकार युक्त सभी विद्याधर मेरे प्रभाव से तुम्हारी आज्ञा व आदेश को विनयपूर्वक पालन करने वाले होंगे। तुम्हें सभी विद्या सिद्ध होगी। गाहा :
ता इण्डिं गंतूणं वेयड्ढे सिद्धकूड-सिहरम्मि । सासय-जिण-पडिमाणं महिमं अट्ठाहिअं काउं ।।१३७।। अभत्थिय धरणिंदं सव्वाओ तुज्झ खयर-विज्जाओ। दाऊण जहाविहिणा गच्छिस्सं ताहि स-ट्ठाणं ।।१३८।।